Gujarat riots in Hindi | साल 2002 के समय गुजरात में एक बड़ा हादसा हुआ था जिसका जिम्मेदार तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को माना गया. गुजरात दंगों के बाद विपक्ष पार्टियों ने नरेंद्र मोदी की छवि को धूमिल करने की कोशिश खूब की और विरोधियों ने ऐसा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. साल 2002 से लेकर कई सालों तक एक भी दिन ऐसा नहीं था जब मोदी के विरोधियों ने दंगों के जख्मों को नहीं कुरेदा हो. जख्मों को कुरेदते हुए वे ये भूल गए कि जनता के बीच उन्होने जो भ्रम फैला रथा है उसका पर्दाफाश एक दिन तो होना ही है. साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों से जुड़ी कुछ अहम बातों के साथ हम आपको इससे जुड़े 5 भ्रम भी बताएंगे जो उस समय विपक्ष दल के लोगों ने फैलाए थे.
क्या हुआ था 2002 के गुजरात दंगों में ? | Gujarat riots in Hindi
भारत के इतिहास में गुजरात दंगों का भी जिक्र होता है. उस दौरान नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे तो उनके ऊपर सारा इल्ज़ाम आ गया था, हालांकि बाद में कोर्ट से उन्हें क्लीन चिट मिल गई थी. 27 फरवरी, 2002 को गुजरात में 59 लोगों की आग में जलकर मौत हो गई थी और ये सभी कारसेवक थे जो अयोध्या से एक आयोजन करके लौट रहे थे. 27 फरवरी की सुबह साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके एक कोच से आग की लपटें उठने लगीं और धूएं उठने लगे. साबरमती ट्रेन के S-6 कोच के अंदर भीषण आग लग गई थी, इससे कोच में मौजूद यात्री उसकी चपेट में आ गए. इनमें ज्यादातर वो कारसेवक थे जो राम मंदिर आंदोलन के लिए अयोध्या एक कार्यक्रम करके लौट रहे थे. आग में झुलसने से 59 सेवकों की मौत हो गई थी इस घटना ने बड़ा राजनीतिक रूप ले लिया था. हादसे वाली शाम नरेंद्र मोदी ने एक बैठक बुलवाई और इसमें तमाम लोगों के सवाल उठे. आरोप लगे कि बैठक में क्रिया की प्रतिक्रिया होने की बात हो रही थी.
ट्रेन की आग को साजिश बताया गया, ट्रेन में भीड़ द्वारा पेट्रोल डालकर आग लगाने की बात गोधरा कांड की जांच कर रहे नानवती आयोग ने मानी थी. मगर गोधरा कांड के अगले ही दिन मामला अशांत होने लगा और 28 फरवरी को गोधरा से कारसेवकों के शव को खुले ट्रक में अहमदाबाद लाया गया. ये घटना भी चर्चा में शामिल हुई थी. इन शवों को परिजनों के बजाए विश्व हिंदू परिषद को सौंप दिया गया था, जल्द ही गोधरा ट्रेन की इस घटना ने गुजरात में दंगों का भयानक रूप ले लिया था. इस दंगे में 790 मुसलमान और 254 हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई तो कुछ लोगों को जिंदा जला दिया गया था. उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे तो हिंसा शुरु करने का आरोप उन्हें माना गया क्योंकि पुलिस और सरकारी अधिरारी थे जिन्होंने कथित रूप से दंगाइयों को निर्देशित किया था और उन्हें मुस्लिम स्वामित्व वाली संपत्तियों की सूची थी तो ये सब कोर्ट में पेश किए गए. साल 2014 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी थी.
गुजरात दंगों में फैलाए गए थे ये भ्रम | Gujarat riots in Hindi
गोधरा कांड
एसआईटी की विशेष अदालत ने एक मार्च, 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था. वहीं 63 लोगों को बरी कर दिया गया था. इऩमें 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई थी जबकि 20 को उम्रकैद की सजा दी गई. धीरे-धीरे ये केस खत्म हुआ लेकिन उन दिनों इन 5 बातों को लेकर विरोधियों ने कुछ ऐसे भ्रम फैलाए थे..
1. तीन दिन बाद बुलाई गई थी सेना
बहुत से लोगों का ऐसा सोचना है कि दंगों को नियंत्रित करने के लिए तत्कालीन सीएम मोदी ने तीन दिन बाद सेना बुलाई थी. जबकि ये बात पूरी तरह से गलत है. एसआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, 28 फरवरी को ही मोदी ने सेना बुलाने का फैसला लिया और सेना को तुरंत सूचना मिली लेकिन इस दौरान सेना बॉर्डर पर तैनात थी तो 1 मार्च के पहले सेना नहीं पहुंच पाई थी. ऐसा भी कहा गया कि मोदी ने दंगे रोकने के लिए कोई कोशिश नहीं की, जबकि दंगे की शुरुआत होते ही मोदी ने अपने पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान से पुलिस फोर्स की मदद मांगी थी. महाराष्ट्र ने दो कंपनी फोर्स भेजी, वहीं एमपी के तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह ने फोर्स भेजने से मना कर दिया था.
2. मोदी कभी दंगा प्रभावित इलाके नहीं गए
एक भ्रम ये भी था कि जहां पर ये घटना हुई वहां नरेंद्र मोदी कभी गए ही नहीं थे लेकिन एसआईटी की रिपोर्ट में बताया गया कि नरेंद्र मोदी तत्कालीन गृहमंत्री एल के आडवाणी के साथ 3 मार्च, 2002 को दंगा प्रभावित इलाकों में गए और उसके अगले दिन मोदी और आडवाणी ने सौराष्ट्र और भावनगर में दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा भी किया था. मोदी के ही प्रयासों से मदरसे से 500 बच्चों को जिंदा बचाया गया था, अहमदाबाद के इलाकों का दौरा 5 मार्च को किया गया था.
3. राहत शिविर के लिए कुछ नहीं किया
साल 2013 में मुलायम सिंह यादव ने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगे के लिए लगाए गए राहत शिविरों में दंगा पीड़ित नहीं बल्कि अलग-अलग राजनीतिक दलों के लोग है. सभी ने इस बात पर यकीन कर लिया था लेकिन नरेंद्र मोदी ने राहत शिविरों में सामग्री पहुंचाने के खुद प्रयास किए थे. यहां तक इनकी ही देखरेख में कमेटी बनाई गई उसका अध्यक्ष राज्यपाल को बनाया गया. इस कमेटी में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी नेता, विपक्ष नरेश पटेल, पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल, सेवा संस्था की ईलाबेन भट्ट, साबरमती आश्रम के पद्मश्री ईश्वरभाई पटेल को शामिल किया था.
4. मीटिंग में मोदी ने कही ऐसी बातें
एक बड़ा झूठ था जिसमें बताया गया था कि नरेंद्र मोदी ने बैठक बुलाई थी जिसमें कहा कि हिंदुओं को अपना गुस्सा निकालने दो. ऐसी बातें बोलकर विरोधियों ने मोदी के खिलाफ कई बातें कहीं जबकि सच कुछ और थ. एसआईटी के मुताबिक, मीटिंग 27 फरवरी, 2002 को गुजरात की समीक्षा के लिए हुई. मीटिंग में मौजूद कई अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए थे कि जल्द से जल्द शांति बनाने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं और इस मीटिंग में एक भी राजनीतिक व्यक्ति मौजूद नहीं था.
5. संजीव भट्ट को माना गया ईमानदार ऑफिसर
बहुत से लोगों के दिमाग में है कि संजीव भट्ट एक ईमानदार ऑफिसर हैं जो न्याय के लिए उस समय लड़ रहे थे. मगर एसाईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी ईमानदारी पर चर्चा करना भी बेईमानी होगी. संजीव भट्ट ने कहा कि उस मीटिंग में उनके साथ डीजीपी के चक्रवर्ती भी थे जबकि चक्रवर्ती का कहना है कि वो मीटिंग में भट्ट के साथ नहीं थे.
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Gujarat riots in Hindi | साल 2002 के समय गुजरात में एक बड़ा हादसा हुआ था जिसका जिम्मेदार तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को माना गया. गुजरात दंगों के बाद विपक्ष पार्टियों ने नरेंद्र मोदी की छवि को धूमिल करने की कोशिश खूब की और विरोधियों ने ऐसा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. साल 2002 से लेकर कई सालों तक एक भी दिन ऐसा नहीं था जब मोदी के विरोधियों ने दंगों के जख्मों को नहीं कुरेदा हो. जख्मों को कुरेदते हुए वे ये भूल गए कि जनता के बीच उन्होने जो भ्रम फैला रथा है उसका पर्दाफाश एक दिन तो होना ही है. साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों से जुड़ी कुछ अहम बातों के साथ हम आपको इससे जुड़े 5 भ्रम भी बताएंगे जो उस समय विपक्ष दल के लोगों ने फैलाए थे.
क्या हुआ था 2002 के गुजरात दंगों में ? | Gujarat riots in Hindi
भारत के इतिहास में गुजरात दंगों का भी जिक्र होता है. उस दौरान नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे तो उनके ऊपर सारा इल्ज़ाम आ गया था, हालांकि बाद में कोर्ट से उन्हें क्लीन चिट मिल गई थी. 27 फरवरी, 2002 को गुजरात में 59 लोगों की आग में जलकर मौत हो गई थी और ये सभी कारसेवक थे जो अयोध्या से एक आयोजन करके लौट रहे थे. 27 फरवरी की सुबह साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके एक कोच से आग की लपटें उठने लगीं और धूएं उठने लगे. साबरमती ट्रेन के S-6 कोच के अंदर भीषण आग लग गई थी, इससे कोच में मौजूद यात्री उसकी चपेट में आ गए. इनमें ज्यादातर वो कारसेवक थे जो राम मंदिर आंदोलन के लिए अयोध्या एक कार्यक्रम करके लौट रहे थे. आग में झुलसने से 59 सेवकों की मौत हो गई थी इस घटना ने बड़ा राजनीतिक रूप ले लिया था. हादसे वाली शाम नरेंद्र मोदी ने एक बैठक बुलवाई और इसमें तमाम लोगों के सवाल उठे. आरोप लगे कि बैठक में क्रिया की प्रतिक्रिया होने की बात हो रही थी.
ट्रेन की आग को साजिश बताया गया, ट्रेन में भीड़ द्वारा पेट्रोल डालकर आग लगाने की बात गोधरा कांड की जांच कर रहे नानवती आयोग ने मानी थी. मगर गोधरा कांड के अगले ही दिन मामला अशांत होने लगा और 28 फरवरी को गोधरा से कारसेवकों के शव को खुले ट्रक में अहमदाबाद लाया गया. ये घटना भी चर्चा में शामिल हुई थी. इन शवों को परिजनों के बजाए विश्व हिंदू परिषद को सौंप दिया गया था, जल्द ही गोधरा ट्रेन की इस घटना ने गुजरात में दंगों का भयानक रूप ले लिया था. इस दंगे में 790 मुसलमान और 254 हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई तो कुछ लोगों को जिंदा जला दिया गया था. उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे तो हिंसा शुरु करने का आरोप उन्हें माना गया क्योंकि पुलिस और सरकारी अधिरारी थे जिन्होंने कथित रूप से दंगाइयों को निर्देशित किया था और उन्हें मुस्लिम स्वामित्व वाली संपत्तियों की सूची थी तो ये सब कोर्ट में पेश किए गए. साल 2014 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी थी.
गुजरात दंगों में फैलाए गए थे ये भ्रम | Gujarat riots in Hindi
गोधरा कांड
एसआईटी की विशेष अदालत ने एक मार्च, 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था. वहीं 63 लोगों को बरी कर दिया गया था. इऩमें 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई थी जबकि 20 को उम्रकैद की सजा दी गई. धीरे-धीरे ये केस खत्म हुआ लेकिन उन दिनों इन 5 बातों को लेकर विरोधियों ने कुछ ऐसे भ्रम फैलाए थे..
1. तीन दिन बाद बुलाई गई थी सेना
बहुत से लोगों का ऐसा सोचना है कि दंगों को नियंत्रित करने के लिए तत्कालीन सीएम मोदी ने तीन दिन बाद सेना बुलाई थी. जबकि ये बात पूरी तरह से गलत है. एसआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, 28 फरवरी को ही मोदी ने सेना बुलाने का फैसला लिया और सेना को तुरंत सूचना मिली लेकिन इस दौरान सेना बॉर्डर पर तैनात थी तो 1 मार्च के पहले सेना नहीं पहुंच पाई थी. ऐसा भी कहा गया कि मोदी ने दंगे रोकने के लिए कोई कोशिश नहीं की, जबकि दंगे की शुरुआत होते ही मोदी ने अपने पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान से पुलिस फोर्स की मदद मांगी थी. महाराष्ट्र ने दो कंपनी फोर्स भेजी, वहीं एमपी के तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह ने फोर्स भेजने से मना कर दिया था.
2. मोदी कभी दंगा प्रभावित इलाके नहीं गए
एक भ्रम ये भी था कि जहां पर ये घटना हुई वहां नरेंद्र मोदी कभी गए ही नहीं थे लेकिन एसआईटी की रिपोर्ट में बताया गया कि नरेंद्र मोदी तत्कालीन गृहमंत्री एल के आडवाणी के साथ 3 मार्च, 2002 को दंगा प्रभावित इलाकों में गए और उसके अगले दिन मोदी और आडवाणी ने सौराष्ट्र और भावनगर में दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा भी किया था. मोदी के ही प्रयासों से मदरसे से 500 बच्चों को जिंदा बचाया गया था, अहमदाबाद के इलाकों का दौरा 5 मार्च को किया गया था.
3. राहत शिविर के लिए कुछ नहीं किया
साल 2013 में मुलायम सिंह यादव ने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगे के लिए लगाए गए राहत शिविरों में दंगा पीड़ित नहीं बल्कि अलग-अलग राजनीतिक दलों के लोग है. सभी ने इस बात पर यकीन कर लिया था लेकिन नरेंद्र मोदी ने राहत शिविरों में सामग्री पहुंचाने के खुद प्रयास किए थे. यहां तक इनकी ही देखरेख में कमेटी बनाई गई उसका अध्यक्ष राज्यपाल को बनाया गया. इस कमेटी में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी नेता, विपक्ष नरेश पटेल, पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल, सेवा संस्था की ईलाबेन भट्ट, साबरमती आश्रम के पद्मश्री ईश्वरभाई पटेल को शामिल किया था.
4. मीटिंग में मोदी ने कही ऐसी बातें
एक बड़ा झूठ था जिसमें बताया गया था कि नरेंद्र मोदी ने बैठक बुलाई थी जिसमें कहा कि हिंदुओं को अपना गुस्सा निकालने दो. ऐसी बातें बोलकर विरोधियों ने मोदी के खिलाफ कई बातें कहीं जबकि सच कुछ और थ. एसआईटी के मुताबिक, मीटिंग 27 फरवरी, 2002 को गुजरात की समीक्षा के लिए हुई. मीटिंग में मौजूद कई अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए थे कि जल्द से जल्द शांति बनाने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं और इस मीटिंग में एक भी राजनीतिक व्यक्ति मौजूद नहीं था.
5. संजीव भट्ट को माना गया ईमानदार ऑफिसर
बहुत से लोगों के दिमाग में है कि संजीव भट्ट एक ईमानदार ऑफिसर हैं जो न्याय के लिए उस समय लड़ रहे थे. मगर एसाईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी ईमानदारी पर चर्चा करना भी बेईमानी होगी. संजीव भट्ट ने कहा कि उस मीटिंग में उनके साथ डीजीपी के चक्रवर्ती भी थे जबकि चक्रवर्ती का कहना है कि वो मीटिंग में भट्ट के साथ नहीं थे.
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