13 सितंबर से पूरा देश पितृपक्ष मना रहा है और ये पूरे 15 दिनों तक चलेगा इसमें जो हमारे घर के पितर लोग मर जाते हैं तो उनके श्राद्ध का काम चलता है। इस दौरान लोग ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षणा देते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं कि उनके पितर लोग जहां भी हैं चैन और खुशी के साथ रहें। शास्त्रों के अनुसार पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है और पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और उन्हें एक उम्मीद भी होती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि पिंडदान और तिलांजलि प्रधान तो करगें। मगर ये सब श्रद्धा का खेल है और जो इसमें विश्वास रखते हैं वो असल में पितृपक्ष को मानते ही हैं।
पितृपक्ष में श्राद्ध से जुड़ी खास बातें
ऐसा बताया जाता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पितृ धरती पर आते हैं और इस दौरान हर किसी को वही करना चाहिए जो उनके पितरों को पसंद होता था। हिंदू धर्म शास्त्रों में पितृपक्ष में श्राद्ध जरूर करना चाहिए और श्राद्ध में पितरों को उम्मीद भी रहती है कि उनके पुत्र या पौत्रादि पिंडदान करके उन्हें एक बार फिर तृप्त करेंगे। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं।
पितृपक्ष में श्राद्ध
1. पिता का श्राद्ध पुत्र ही करता है और अगर पुत्र नहीं है तो पत्नी कर सकती है, अगर पत्नी भी नहीं है तो सगा भाई भी कर सकता है। एक से ज्यादा पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र ही श्राद्ध कर्म करता है।
2. ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद उन्हें पूरे सम्मान के साथ विदा करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों के साथ पितल भी चलते हैं और ब्राह्मण को भोजन करवाकर परिजनों को भोजन कराना चाहिए।
3. श्राद्ध तिथि से पहले ब्राह्मण को भोजन के लिए नियमंत्रण देना चाहिए। भोजन के लिए आए हुए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में ही बैठाना चाहिए।
4. ऐसी मान्यता है कि पितरों को दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाया भोजन ही बनाएं। फिर वो भोजन पहले कौवे के लिए रखे और फिर ब्राह्मण को खिलाएं।
5. श्राद्ध तिथि से पहले ही ब्राह्मणों को भोजन के लिए निमंत्रण देना चाहिए। भोजन के लिए आए हुए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं और उनका सम्मान करें।
6. भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चीटी के लिए उनका भाग निकाल देना चाहिए। इसके बाद हाथ में जल लेकर अक्षत, चंदन, तिल और फूल से संकल्प लेना चाहिए।
7. कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला हुआ भोजन उन्हें ही कराएं और किसी को ना दें। देवता और चीटी का भोजन गाय को खिला देना चाहिए। ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर उन्हें कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान करके आशीर्वाद लें।
8. श्राद्धकर्म में सिर्फ गाय का घी, दूध और दही का उपयोग करना चाहिए।
9. श्राद्धकर्म में चांदी के बर्तनों का उपयोग करना और उनका दान करना पुण्यदायक माना जाता है।
10. ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर ही कराना चाहिए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार, पितृ तब तक भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहता है।
11. अगर पितृ शस्त्र से मारे गए हैं तो उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अलावा चतुर्दशी में भी कराया जा सकता है।
12. श्राद्धकर्म में ब्राह्मण भोज का बहुत महत्व माना जाता है। जो व्यक्ति बिना ब्राह्मम के श्राद्धकर्म करते हैं उनके पितृ भोजन नहीं करते हैं।
13. श्राद्धकर्म करने के लिए कभी दूसरों की भूमि का इस्तेमाल नहीं करें। वन, पर्वत, पुण्यतिथि में श्राद्ध कर्म करते हैं।
14. शुक्लपक्ष में, रात्रि में, अपने जन्मदिन पर और एक दिन में दो तिथियों का योग होता है तो ऐसे में कभी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय सभी कार्यों के लिए अनूकूल है लेकिन श्राद्ध के लिए शाम का समय ठीक नहीं माना जाता है।
15. श्राद्ध में गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल जैसे सामना जरूरी होते हैं। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन नहीं कराया जाता है। इसके अलावा सोने, चांदी, कांसे, तांबे के बर्तन उत्तम होते हैं आप इनका दान भी कर सकते हैं। अगर इनका अभाव है तो पत्तल का उपयोग भी किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें- घर में तुलसी का पौधा क्यों लगाते हैं? साथ ही जानिए Tulsi ke Fayde
13 सितंबर से पूरा देश पितृपक्ष मना रहा है और ये पूरे 15 दिनों तक चलेगा इसमें जो हमारे घर के पितर लोग मर जाते हैं तो उनके श्राद्ध का काम चलता है। इस दौरान लोग ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षणा देते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं कि उनके पितर लोग जहां भी हैं चैन और खुशी के साथ रहें। शास्त्रों के अनुसार पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है और पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं और उन्हें एक उम्मीद भी होती है कि उनके पुत्र-पौत्रादि पिंडदान और तिलांजलि प्रधान तो करगें। मगर ये सब श्रद्धा का खेल है और जो इसमें विश्वास रखते हैं वो असल में पितृपक्ष को मानते ही हैं।
पितृपक्ष में श्राद्ध से जुड़ी खास बातें
ऐसा बताया जाता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पितृ धरती पर आते हैं और इस दौरान हर किसी को वही करना चाहिए जो उनके पितरों को पसंद होता था। हिंदू धर्म शास्त्रों में पितृपक्ष में श्राद्ध जरूर करना चाहिए और श्राद्ध में पितरों को उम्मीद भी रहती है कि उनके पुत्र या पौत्रादि पिंडदान करके उन्हें एक बार फिर तृप्त करेंगे। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं।
पितृपक्ष में श्राद्ध
1. पिता का श्राद्ध पुत्र ही करता है और अगर पुत्र नहीं है तो पत्नी कर सकती है, अगर पत्नी भी नहीं है तो सगा भाई भी कर सकता है। एक से ज्यादा पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र ही श्राद्ध कर्म करता है।
2. ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद उन्हें पूरे सम्मान के साथ विदा करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों के साथ पितल भी चलते हैं और ब्राह्मण को भोजन करवाकर परिजनों को भोजन कराना चाहिए।
3. श्राद्ध तिथि से पहले ब्राह्मण को भोजन के लिए नियमंत्रण देना चाहिए। भोजन के लिए आए हुए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में ही बैठाना चाहिए।
4. ऐसी मान्यता है कि पितरों को दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाया भोजन ही बनाएं। फिर वो भोजन पहले कौवे के लिए रखे और फिर ब्राह्मण को खिलाएं।
5. श्राद्ध तिथि से पहले ही ब्राह्मणों को भोजन के लिए निमंत्रण देना चाहिए। भोजन के लिए आए हुए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं और उनका सम्मान करें।
6. भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चीटी के लिए उनका भाग निकाल देना चाहिए। इसके बाद हाथ में जल लेकर अक्षत, चंदन, तिल और फूल से संकल्प लेना चाहिए।
7. कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला हुआ भोजन उन्हें ही कराएं और किसी को ना दें। देवता और चीटी का भोजन गाय को खिला देना चाहिए। ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर उन्हें कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान करके आशीर्वाद लें।
8. श्राद्धकर्म में सिर्फ गाय का घी, दूध और दही का उपयोग करना चाहिए।
9. श्राद्धकर्म में चांदी के बर्तनों का उपयोग करना और उनका दान करना पुण्यदायक माना जाता है।
10. ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर ही कराना चाहिए क्योंकि शास्त्रों के अनुसार, पितृ तब तक भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रहता है।
11. अगर पितृ शस्त्र से मारे गए हैं तो उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अलावा चतुर्दशी में भी कराया जा सकता है।
12. श्राद्धकर्म में ब्राह्मण भोज का बहुत महत्व माना जाता है। जो व्यक्ति बिना ब्राह्मम के श्राद्धकर्म करते हैं उनके पितृ भोजन नहीं करते हैं।
13. श्राद्धकर्म करने के लिए कभी दूसरों की भूमि का इस्तेमाल नहीं करें। वन, पर्वत, पुण्यतिथि में श्राद्ध कर्म करते हैं।
14. शुक्लपक्ष में, रात्रि में, अपने जन्मदिन पर और एक दिन में दो तिथियों का योग होता है तो ऐसे में कभी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय सभी कार्यों के लिए अनूकूल है लेकिन श्राद्ध के लिए शाम का समय ठीक नहीं माना जाता है।
15. श्राद्ध में गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल जैसे सामना जरूरी होते हैं। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन नहीं कराया जाता है। इसके अलावा सोने, चांदी, कांसे, तांबे के बर्तन उत्तम होते हैं आप इनका दान भी कर सकते हैं। अगर इनका अभाव है तो पत्तल का उपयोग भी किया जा सकता है।
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