इस समय दुनिया में कोरोना वायरस (Corona Virus) का प्रकोप फैला हुआ है. करोड़ों लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं और लाखों अपनी जान गंवा चुके हैं. कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए हर जगह लॉकडाउन की स्थिति है. कोविड-19 (Covid-19) ने सभी को प्रभावित किया है. ऐसी स्थिति में लोग मानसिक समस्याओं के शिकार हो रहे हैं. डॉ. हेमलता एस मोहन, शिक्षाविद एवं संस्कृति संवाहक से जानिए क्या है Depression ka samadhan?
क्या है डिप्रेशन का समाधान? (Depression ka samadhan)
ऐसा नहीं है कि इससे पहले कोई महामारी नहीं थी. प्लेग, हैजा, स्पेनिश फ्लू, एशियाई फ्लू, सार्स (SARS), मर्स (MERS) एवं इ-बोला (Ebola) जैसी महामारी ने पहले भी वैश्विक स्तर पर लोगों को प्रभावित किया है. लेकिन कोविड-19 की महामारी बिल्कुल अलग पैमाने पर है. इसने पूरी दुनिया में दहशत पैदा कर दी है. वैश्विक स्तर पर निरंतर किये जा रहे प्रयासों के बाद भी कोविड-19 का सटीक उपचार उपलब्ध नहीं होने से लोगों के मन में निरंतर डर की भावना बढ़ रही है, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य गंभीर रूप से बाधित हो रहा है.
Depression ka samadhan
यह साफ है कि संक्रामक रोग सभी लोगों पर एक गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता हैं, उन लोगों पर भी जो वायरस से प्रभावित नहीं हैं. इन बीमारियों को लेकर हमारी प्रतिक्रिया मेडिकल ज्ञान पर आधारित न होकर हमारी सामाजिक समझ से भी संचालित होती है. इंटरनेट के दौर में हम ज्यादातर सूचनाएं ऑनलाइन हासिल करते हैं. यह एक व्यवहारवादी परिवर्तन है, जिसने स्वास्थ्य विषयों पर लोगों के आपसी संवाद को क्रांतिकारी तरीके से बदल कर रख दिया है. ये माना जाता है कि डर पॉज़िटिव और निगेटिव दोनों होता है बस समझने के तरीके का फर्क है. यही कारण है कि WHO समेत कई प्रमाणित स्वास्थ्य संगठनों ने यह सिफारिश की है कि लोग तनाव और बेचैनी का सबब बनने वाली फर्जी जानकारियों से बचने के लिए विश्वसनीय स्वास्थ्य पेशेवरों से ही जानकारी और सलाह लें.
अपने बच्चों पर माता-पिता दें ध्यान
कोरोना के कारण किशोरों एवं युवाओं में अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितिता में काफी बढ़ोतरी भी हुयी है, जिसके कारण युवाओं में मानसिक अवसाद, निरंतर चिंता एवं गंभीर हालातों में आत्महत्या तक की नौबत आ रही है. इसके लिए यह जरुरी है कि माता-पिता किशोरों की मानसिक स्थिति को समझें एवं संक्रमण के कारण होने वाले चुनौतियों का सामना करने में उनका सहयोग करें. लंबे समय से स्कूल एवं कॉलेज का बंद होना, दोस्तों से संपर्क खोना, परीक्षाओं के बारे में अनिश्चितता और उनके करियर विकल्पों पर प्रभाव एवं युवाओं के सामने अपनी नौकरी बचाने के दबाब के कारण उनमें अकेलापन, उदासी, आक्रामकता और चिड़चिड़ापन की भावनाएं पैदा हो सकती हैं.
माता-पिता को किशोरों एवं युवाओं की बातों को सुनकर, उनकी कठिनाइयों को स्वीकार कर, उनकी शंकाओं को दूर कर एवं उन्हें आश्वस्त कर समस्याओं को हल करने में भावनात्मक सहायता करना चाहिए. ऐसे दौर में कोरोना को लेकर कई भ्रामक जानकारियां भी फैलाई जा रही है. इसलिए माता-पिता किशोरों को विश्वसनीय स्रोतों जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर. सीडीसी आदि से जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि उन्हें सही जानकारी प्राप्त हो सके.
यह भी पढ़ें- क्यों आता है आत्महत्या करने का ख्याल? इन तरीकों से बच सकती है जिंदगी
इस समय दुनिया में कोरोना वायरस (Corona Virus) का प्रकोप फैला हुआ है. करोड़ों लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं और लाखों अपनी जान गंवा चुके हैं. कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए हर जगह लॉकडाउन की स्थिति है. कोविड-19 (Covid-19) ने सभी को प्रभावित किया है. ऐसी स्थिति में लोग मानसिक समस्याओं के शिकार हो रहे हैं. डॉ. हेमलता एस मोहन, शिक्षाविद एवं संस्कृति संवाहक से जानिए क्या है Depression ka samadhan?
क्या है डिप्रेशन का समाधान? (Depression ka samadhan)
ऐसा नहीं है कि इससे पहले कोई महामारी नहीं थी. प्लेग, हैजा, स्पेनिश फ्लू, एशियाई फ्लू, सार्स (SARS), मर्स (MERS) एवं इ-बोला (Ebola) जैसी महामारी ने पहले भी वैश्विक स्तर पर लोगों को प्रभावित किया है. लेकिन कोविड-19 की महामारी बिल्कुल अलग पैमाने पर है. इसने पूरी दुनिया में दहशत पैदा कर दी है. वैश्विक स्तर पर निरंतर किये जा रहे प्रयासों के बाद भी कोविड-19 का सटीक उपचार उपलब्ध नहीं होने से लोगों के मन में निरंतर डर की भावना बढ़ रही है, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य गंभीर रूप से बाधित हो रहा है.
Depression ka samadhan
यह साफ है कि संक्रामक रोग सभी लोगों पर एक गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता हैं, उन लोगों पर भी जो वायरस से प्रभावित नहीं हैं. इन बीमारियों को लेकर हमारी प्रतिक्रिया मेडिकल ज्ञान पर आधारित न होकर हमारी सामाजिक समझ से भी संचालित होती है. इंटरनेट के दौर में हम ज्यादातर सूचनाएं ऑनलाइन हासिल करते हैं. यह एक व्यवहारवादी परिवर्तन है, जिसने स्वास्थ्य विषयों पर लोगों के आपसी संवाद को क्रांतिकारी तरीके से बदल कर रख दिया है. ये माना जाता है कि डर पॉज़िटिव और निगेटिव दोनों होता है बस समझने के तरीके का फर्क है. यही कारण है कि WHO समेत कई प्रमाणित स्वास्थ्य संगठनों ने यह सिफारिश की है कि लोग तनाव और बेचैनी का सबब बनने वाली फर्जी जानकारियों से बचने के लिए विश्वसनीय स्वास्थ्य पेशेवरों से ही जानकारी और सलाह लें.
अपने बच्चों पर माता-पिता दें ध्यान
कोरोना के कारण किशोरों एवं युवाओं में अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितिता में काफी बढ़ोतरी भी हुयी है, जिसके कारण युवाओं में मानसिक अवसाद, निरंतर चिंता एवं गंभीर हालातों में आत्महत्या तक की नौबत आ रही है. इसके लिए यह जरुरी है कि माता-पिता किशोरों की मानसिक स्थिति को समझें एवं संक्रमण के कारण होने वाले चुनौतियों का सामना करने में उनका सहयोग करें. लंबे समय से स्कूल एवं कॉलेज का बंद होना, दोस्तों से संपर्क खोना, परीक्षाओं के बारे में अनिश्चितता और उनके करियर विकल्पों पर प्रभाव एवं युवाओं के सामने अपनी नौकरी बचाने के दबाब के कारण उनमें अकेलापन, उदासी, आक्रामकता और चिड़चिड़ापन की भावनाएं पैदा हो सकती हैं.
माता-पिता को किशोरों एवं युवाओं की बातों को सुनकर, उनकी कठिनाइयों को स्वीकार कर, उनकी शंकाओं को दूर कर एवं उन्हें आश्वस्त कर समस्याओं को हल करने में भावनात्मक सहायता करना चाहिए. ऐसे दौर में कोरोना को लेकर कई भ्रामक जानकारियां भी फैलाई जा रही है. इसलिए माता-पिता किशोरों को विश्वसनीय स्रोतों जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, आईसीएमआर. सीडीसी आदि से जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें ताकि उन्हें सही जानकारी प्राप्त हो सके.
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