श्रावण मास में करिए इस शिव मंत्र और Shiv Chalisa की वंदना, बरसेगी बाबा की कृपा

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साल 2020 में 6 जुलाई से श्रावण मास की शुरुआत हुई और ये 3 अगस्त तक बना रहेगा। इस दौरान लोक शिव वंदना करते हैं और उनकी पूजा करने के दौरान Shiv Chalisa और शिव आरती करने के बाद भी शिवजी की पूजा पूरी की जाती है। शिव जी के माध्यम से भक्त अपने सभी दुखों को भुलाकर उनकी भक्ति में लीन हो जाता है और शिव शक्ति से ही इंसान का उद्धार हो सकता है। सावन महीने में लोग शिव जी की पूजा ज्यादा करते हैं लेकिन इन्हें हर मौसम में पूजा जाता है तभी ये देवों के देव महादेव हैं क्योंकि इन्हें सबसे बड़ा देवता कहा जाता है। शिव चालीसा हर सोमवार को करने से उनकी कृपा भक्तों पर हमेशा बरसती है और ये उन्हें प्रसन्न करने का बेहतरीन माध्यम माना जाता है।

Shiv Chalisa और शिव मंत्र का जाप ||ओम शिवोहम रुद्रा नम:||

हिंदू धर्म में शिवजी को त्रिदेवों में एक माना जाता है और इनके 108 तरह के अलग-अलग नाम हैं और उनमें से मुख्य रूप से कुछ इस प्रकार हैं- शिवेंद्र, महेश्वर, शम्भूनाथ, नागेश्वर, रूद्राक्ष, भस्मधारी, भोलेनाथ, शिवाय जैसे अनेक नाम हैं। आमतौर पर लोग ओम नम: शिवाय का जाप करते हैं लेकिन अगर किसी की जान पर बन आती है तो महामृत्युंजय का जाप करना सबसे बेहतर होता है। ये मंत्र इस प्रकार है- “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

शिव दरबार

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥“।। इसके अलावा शिव जी का पसंदीदा नृत्य तांडव होता है और Shiv Tandav Dance कोई भी कर सकता है और पूजा के दौरान अगर ये किया जाए तो बस भोलेभंडारी को प्रसन्न करना और भी आसान हो सकता है। ”ओम शिवोहम रुद्रा नम:” के जाप से आपकी हर परेशानी दूर हो सकती है।

शिव चालीसा (Shiv Chalisa) का जाप करिए

।।दोहा।।

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

Shiv Chalisa

शिव आरती || Shiv Aarti

शिव चालीसा (Shiv Chalisa) के बाद भक्त को शिव आरती करनी चाहिए और पूरी आरती को अगर आपने मन लगाकर किया तो आपको कई तरह के लाभ हो सकते हैं। शिव जी की पूजा का उत्तम दिन सोमवार होता है और इस दिन अगर किसी ने श्रद्धा-भक्ति के साथ शिव जी की अराधना कर लें तो शंकर भगवान यूहीं प्रसन्न हो जाते है। श्रावण मास में सोमवार के दिन व्रत रखना आपकी हर इच्छा को पूरा करता है।

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।

सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।

पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

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