राहुल गांधी
साल 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं जिसमें सभी पार्टी बीजेपी को हराने में लगी हुई है. वहीं कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी जो कि कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी हैं, अपनी पूरी कोशिश में लगे हुए हैं कि वे 2019 का लोकसभा चुनाव जीत सकें. मगर अक्सर वे आम जनता में मजाक पात्र बन जाते हैं और उन्हें ‘पप्पू’ के नाम से संबोधित किया जाने लगता है. आज हम आपको रोचक सफर में राहुल गांधी की 10 सबसे बड़ी गलतियां, जिनकी वजह से वे मजाक पात्र बन गए.
राहुल गांधी की 10 सबसे बड़ी गलतियां –
आपने सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के कई मेमे देखे और कई फनी वीडियोज देखे होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि राहुल गांधी ने अपने कई बयानों में गलतियां की जो अक्सर पार्टी पर भारी पड़ी हैं..
1. विदेश से लौटकर नही देते कोई बयान :
राहुल गांधी जब भी विदेश से लौटते हैं तो उनकी सबसे बड़ी गलती ये होती है कि वे कोई बयान नहीं देते हैं. वह गाड़ियों के काफिले के साथ चुपचाप अपने घर पहुंचे. उन्होंने मीडिया को चेहरा तक नहीं दिखाया. जबकि होना यह चाहिए था कि वह मीडिया के सामने आते और पूरे देश को बताते कि वह कहां और क्यों गए थे, उनका आगे का प्लान क्या है. पर राहुल यहां भी चूक गए.
2. अक्सर देते हैं बेतुके बयान :
अक्सर राहुल गांधी ने ऐसे कई बयान दिए हैं जिन्होंने उनके आलोचकों को उनपर हमले करने के कई मौके दिये. 24 अक्टूबर, 2013 को इंदौर में एक सभा में राहुल ने ये कहकर हंगामा खड़ा कर दिया था कि आईएसआई मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ित युवकों को बरगलाने की कोशिश कर रही है. खुद उनकी सरकार के गृहमंत्रालय ने ऐसी खबर होने से इनकार कर दिया. इससे पहले 6 अगस्त 2013 को इलाहबाद के एक कार्यक्रम में राहुल ने गरीबी को महज एक मानसिक स्थिति बताया. 11 अक्टूबर 2012 को चंडीगढ़ के एक विश्वविद्यालय में राहुल ने पंजाब के युवाओं के बारे में कहा कि यहां 10 में से सात युवा नशे की गिरफ्त में हैं. जबकि14 नवंबर 2011 को फूलपुर में चुनावी सभा में उन्होंने यूपी के युवाओं को महाराष्ट्र जाकर भीख मांगने वाला बता दिया. भट्टा परसौल के किसानों को पीएम से मिलाने ले गए तो दावा किया कि इस गांव में राख के 74 ढेर मिले हैं, जिनमें मानव अवशेष हैं.
Image Courtesy : Zee News
3. दिखावे का होता है गुस्सा :
लोकपाल आंदोलन के लेकर राहुल देशभर में पल रहे आक्रोश की तरफ से उदासीन बने रहे लेकिन एक दिन अचानक लोकसभा में आकर उन्होंने लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की मांग रख सबको हैरान कर दिया. इस दौरान लगभग चीखते हुए दिया गया उनका भाषण चर्चा का विषय बना रहा. यूपी में एक चुनावी सभा में राहुल ने दूसरी पार्टी द्वारा किए गए वादों की लिस्ट के नाम पर अपने ही उम्मीदवारों के नाम लिखी लिस्ट फाड़ डाली. इसी तरह जिस समय पूरी कांग्रेस और मनमोहन सरकार दागियों को बचाने वाले अपने अध्यादेश की वकालत कर रही थी राहुल अचानक प्रेस वार्ता में आए उसे फाड़कर फेंक देने लायक बता दिया था.
4. कई खास अवसरों पर मनाते थे छुट्टी :
साल 2013 में जब उत्तराखंड में भयानक प्राकृतिक आपदा आई थी तब देश के कई बड़े राजनेता इस त्रासदी के समय पीड़ितों से हमदर्दी जता रहे थे और राहुल गांधी उस समय विदेश में छुट्टियां मना रहे थे. लोकसभा चुनाव के बाद जब पार्टी पिछले 10 साल से देश का नेतृत्व कर रहे अपने नेता मनमोहन सिंह को विदाई दे रही थी तब भी राहुल गायब नजर आए. 28 दिसंबर 2014 को कांग्रेस ने अपना 130वां स्थापना दिवस मनाया था जिसमें दुनिया भर के नेता शामिल हुए थे लेकिन इस खास मौके पर भी राहुल गांधी गायब ही रहे.
5. जिम्मेदारी से बचते रहते हैं :
मनमोहन सरकार के दोनों कार्यकाल में जब-जब मंत्रिमंडल बना तब-तब राहुल ने जिम्मेदारी लेने से इंकार किया और उनके ऊपर यही सवाल उठे कि राहुल गांधी अपनी जिम्मेदारियों से बचते क्यों हैं. जब उनकी पार्टी की सरकार थी तब ही वे सरकार में रहकर बहुत से काम कर सकते थे लेकिन उन्होंने बहुत से मौके खो दिये और जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ा. खुद पीएम मनमोहन सिंह का बयान आया कि वे राहुल के नेतृत्व में काम करकर खुश होंगे.
Image Courtesy : The Financial Express
6. कई अहम मौके गंवा दिए :
जब दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे का आंदोलन चल रहा था तब पूरे देश का युवा इस आंदोलन में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में लगा था. उस समय सोनिया गांधी विदेश में थीं और कांग्रेस पार्टी के सदस्यों की उम्मीद राहुल गांधी के ऊपर टिकी थीं लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा. उस समय मीडिया में भी कई राजनीतिक विश्लेषकों रूबरु कराया गया उनका यही मानना था कि अगर राहुल अन्ना के मंच पर जाकर आश्वासन देते तो देश के युवाओं के रातों-रात हीरो बन जाते. उनके लिए दूसरा मौका तब आया जब दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद लोग गुस्से में थे और इंडिया गेट पर युवाओं का सैलाब उमड़ा पड़ा था तब राहुल घर पर थे. गृहराज्य मंत्री आर पी एन सिंह कुछ युवाओं को उनसे मिलाने लेकर भी गए लेकिन राहुल ने उनसे मिलने से मना कर दिया. अगर तब राहुल उन युवाओं के साथ इंडिया गेट पहुंच जाते तो आज उनकी छवि युवाओं के बीच कुछ और ही होती.
7. लोकसभा चुनाव में प्राइमरी :
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे लिए जब राहुल ने नया फॉर्मूला बनाया था तब टिकट के दावेदारों के बीच कार्यकर्ताओं से चुनाव करवाया गया. हालांकि कांग्रेस ने ये एक्सपेरिमेंट सिर्फ 16 सीटों पर किया था लेकिन ये ऐसा प्रयोग रहा जिसने चुनाव से ठीक पहले कार्यकर्ताओं के बीच एकजुटता की बजाय मनमुटाव बढ़ाने का काम किया था और नतीजा ये हुआ कि राहुल की प्राइमरी में जीते हुए उम्मीदवार चुनाव में नहीं जीत पाये थे. हद तो ये हो गई थी कि जब वडोदरा में प्रत्याशी का चयन प्राइमरी के जरिए किया और बाद में उसे हटाकर मधुसूदन मिस्त्री को उतारा गया था.
Image Courtesy : Khas Khabar
8. मीडिया से डील करने में कच्चे :
राहुल गांधी अक्सर अपने इंटरव्यूज में ना तो आत्मविश्वास दिखा पाते हैं और ना किसी बात को स्पष्ट तरीके से रख पाते हैं. यही वजह है कि राहुल की बात आम जनता की समझ नहीं आती और लोग उनके मेमे बनाकर सोशल मीडिया पर इसका लुत्फ उठाते हैं. राहुल ने पिछले 10 साल के कार्यकाल में मीडिया से बहुत कम बात की है या फिर जब भी करते हैं तो अधिकतर ऑफ द रिकॉर्ड ही बात करते हैं. जाहिर है इससे राहुल की जो छवि बनी है कांग्रेस पार्टी उसकी कीमत चुका रही है.
9. सोशल मीडिया का इस्तेमाल देर से किया :
जहां आज के समय छोटे नेता हों या बड़े नेता हों वे सभी खुद को जनता से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं वहीं राहुल गांधी ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल देर से किया. यही बात है कि किस मुद्दे पर राहुल की क्या सोच है, ये जनता के सामने कभी नहीं आ पाता.
10. बिहार में ‘एकला चलो रे’ नीति अपनाई :
साल 2010 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से मजबूत गठबंधन किया तो इस गठबंधन को मात देने के लिए राहुल गांधी के पास आरजेडी यानि लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाने का अलावा कोई चारा नहीं था लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया और उनका ओवर कॉन्फिडेंस ये था कि वे अकेले ही कांग्रेस को मैदान में उतार दिये. नतीजा ये रहा कि कांग्रेस बिहार में 6 सीटों पर ही सिमट गई. गठबंधन को लेकर राहुल की ये हिचकिचाहट बिहार की तरह कई प्रदेशों में पार्टी के लिए बुरे नतीजों का सबब बनी है.
राहुल गांधी
साल 2019 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं जिसमें सभी पार्टी बीजेपी को हराने में लगी हुई है. वहीं कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी जो कि कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी हैं, अपनी पूरी कोशिश में लगे हुए हैं कि वे 2019 का लोकसभा चुनाव जीत सकें. मगर अक्सर वे आम जनता में मजाक पात्र बन जाते हैं और उन्हें ‘पप्पू’ के नाम से संबोधित किया जाने लगता है. आज हम आपको रोचक सफर में राहुल गांधी की 10 सबसे बड़ी गलतियां, जिनकी वजह से वे मजाक पात्र बन गए.
राहुल गांधी की 10 सबसे बड़ी गलतियां –
आपने सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के कई मेमे देखे और कई फनी वीडियोज देखे होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि राहुल गांधी ने अपने कई बयानों में गलतियां की जो अक्सर पार्टी पर भारी पड़ी हैं..
1. विदेश से लौटकर नही देते कोई बयान :
राहुल गांधी जब भी विदेश से लौटते हैं तो उनकी सबसे बड़ी गलती ये होती है कि वे कोई बयान नहीं देते हैं. वह गाड़ियों के काफिले के साथ चुपचाप अपने घर पहुंचे. उन्होंने मीडिया को चेहरा तक नहीं दिखाया. जबकि होना यह चाहिए था कि वह मीडिया के सामने आते और पूरे देश को बताते कि वह कहां और क्यों गए थे, उनका आगे का प्लान क्या है. पर राहुल यहां भी चूक गए.
2. अक्सर देते हैं बेतुके बयान :
अक्सर राहुल गांधी ने ऐसे कई बयान दिए हैं जिन्होंने उनके आलोचकों को उनपर हमले करने के कई मौके दिये. 24 अक्टूबर, 2013 को इंदौर में एक सभा में राहुल ने ये कहकर हंगामा खड़ा कर दिया था कि आईएसआई मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ित युवकों को बरगलाने की कोशिश कर रही है. खुद उनकी सरकार के गृहमंत्रालय ने ऐसी खबर होने से इनकार कर दिया. इससे पहले 6 अगस्त 2013 को इलाहबाद के एक कार्यक्रम में राहुल ने गरीबी को महज एक मानसिक स्थिति बताया. 11 अक्टूबर 2012 को चंडीगढ़ के एक विश्वविद्यालय में राहुल ने पंजाब के युवाओं के बारे में कहा कि यहां 10 में से सात युवा नशे की गिरफ्त में हैं. जबकि14 नवंबर 2011 को फूलपुर में चुनावी सभा में उन्होंने यूपी के युवाओं को महाराष्ट्र जाकर भीख मांगने वाला बता दिया. भट्टा परसौल के किसानों को पीएम से मिलाने ले गए तो दावा किया कि इस गांव में राख के 74 ढेर मिले हैं, जिनमें मानव अवशेष हैं.
Image Courtesy : Zee News
3. दिखावे का होता है गुस्सा :
लोकपाल आंदोलन के लेकर राहुल देशभर में पल रहे आक्रोश की तरफ से उदासीन बने रहे लेकिन एक दिन अचानक लोकसभा में आकर उन्होंने लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने की मांग रख सबको हैरान कर दिया. इस दौरान लगभग चीखते हुए दिया गया उनका भाषण चर्चा का विषय बना रहा. यूपी में एक चुनावी सभा में राहुल ने दूसरी पार्टी द्वारा किए गए वादों की लिस्ट के नाम पर अपने ही उम्मीदवारों के नाम लिखी लिस्ट फाड़ डाली. इसी तरह जिस समय पूरी कांग्रेस और मनमोहन सरकार दागियों को बचाने वाले अपने अध्यादेश की वकालत कर रही थी राहुल अचानक प्रेस वार्ता में आए उसे फाड़कर फेंक देने लायक बता दिया था.
4. कई खास अवसरों पर मनाते थे छुट्टी :
साल 2013 में जब उत्तराखंड में भयानक प्राकृतिक आपदा आई थी तब देश के कई बड़े राजनेता इस त्रासदी के समय पीड़ितों से हमदर्दी जता रहे थे और राहुल गांधी उस समय विदेश में छुट्टियां मना रहे थे. लोकसभा चुनाव के बाद जब पार्टी पिछले 10 साल से देश का नेतृत्व कर रहे अपने नेता मनमोहन सिंह को विदाई दे रही थी तब भी राहुल गायब नजर आए. 28 दिसंबर 2014 को कांग्रेस ने अपना 130वां स्थापना दिवस मनाया था जिसमें दुनिया भर के नेता शामिल हुए थे लेकिन इस खास मौके पर भी राहुल गांधी गायब ही रहे.
5. जिम्मेदारी से बचते रहते हैं :
मनमोहन सरकार के दोनों कार्यकाल में जब-जब मंत्रिमंडल बना तब-तब राहुल ने जिम्मेदारी लेने से इंकार किया और उनके ऊपर यही सवाल उठे कि राहुल गांधी अपनी जिम्मेदारियों से बचते क्यों हैं. जब उनकी पार्टी की सरकार थी तब ही वे सरकार में रहकर बहुत से काम कर सकते थे लेकिन उन्होंने बहुत से मौके खो दिये और जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ा. खुद पीएम मनमोहन सिंह का बयान आया कि वे राहुल के नेतृत्व में काम करकर खुश होंगे.
Image Courtesy : The Financial Express
6. कई अहम मौके गंवा दिए :
जब दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे का आंदोलन चल रहा था तब पूरे देश का युवा इस आंदोलन में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में लगा था. उस समय सोनिया गांधी विदेश में थीं और कांग्रेस पार्टी के सदस्यों की उम्मीद राहुल गांधी के ऊपर टिकी थीं लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा. उस समय मीडिया में भी कई राजनीतिक विश्लेषकों रूबरु कराया गया उनका यही मानना था कि अगर राहुल अन्ना के मंच पर जाकर आश्वासन देते तो देश के युवाओं के रातों-रात हीरो बन जाते. उनके लिए दूसरा मौका तब आया जब दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद लोग गुस्से में थे और इंडिया गेट पर युवाओं का सैलाब उमड़ा पड़ा था तब राहुल घर पर थे. गृहराज्य मंत्री आर पी एन सिंह कुछ युवाओं को उनसे मिलाने लेकर भी गए लेकिन राहुल ने उनसे मिलने से मना कर दिया. अगर तब राहुल उन युवाओं के साथ इंडिया गेट पहुंच जाते तो आज उनकी छवि युवाओं के बीच कुछ और ही होती.
7. लोकसभा चुनाव में प्राइमरी :
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे लिए जब राहुल ने नया फॉर्मूला बनाया था तब टिकट के दावेदारों के बीच कार्यकर्ताओं से चुनाव करवाया गया. हालांकि कांग्रेस ने ये एक्सपेरिमेंट सिर्फ 16 सीटों पर किया था लेकिन ये ऐसा प्रयोग रहा जिसने चुनाव से ठीक पहले कार्यकर्ताओं के बीच एकजुटता की बजाय मनमुटाव बढ़ाने का काम किया था और नतीजा ये हुआ कि राहुल की प्राइमरी में जीते हुए उम्मीदवार चुनाव में नहीं जीत पाये थे. हद तो ये हो गई थी कि जब वडोदरा में प्रत्याशी का चयन प्राइमरी के जरिए किया और बाद में उसे हटाकर मधुसूदन मिस्त्री को उतारा गया था.
Image Courtesy : Khas Khabar
8. मीडिया से डील करने में कच्चे :
राहुल गांधी अक्सर अपने इंटरव्यूज में ना तो आत्मविश्वास दिखा पाते हैं और ना किसी बात को स्पष्ट तरीके से रख पाते हैं. यही वजह है कि राहुल की बात आम जनता की समझ नहीं आती और लोग उनके मेमे बनाकर सोशल मीडिया पर इसका लुत्फ उठाते हैं. राहुल ने पिछले 10 साल के कार्यकाल में मीडिया से बहुत कम बात की है या फिर जब भी करते हैं तो अधिकतर ऑफ द रिकॉर्ड ही बात करते हैं. जाहिर है इससे राहुल की जो छवि बनी है कांग्रेस पार्टी उसकी कीमत चुका रही है.
9. सोशल मीडिया का इस्तेमाल देर से किया :
जहां आज के समय छोटे नेता हों या बड़े नेता हों वे सभी खुद को जनता से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं वहीं राहुल गांधी ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल देर से किया. यही बात है कि किस मुद्दे पर राहुल की क्या सोच है, ये जनता के सामने कभी नहीं आ पाता.
10. बिहार में ‘एकला चलो रे’ नीति अपनाई :
साल 2010 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से मजबूत गठबंधन किया तो इस गठबंधन को मात देने के लिए राहुल गांधी के पास आरजेडी यानि लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाने का अलावा कोई चारा नहीं था लेकिन राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया और उनका ओवर कॉन्फिडेंस ये था कि वे अकेले ही कांग्रेस को मैदान में उतार दिये. नतीजा ये रहा कि कांग्रेस बिहार में 6 सीटों पर ही सिमट गई. गठबंधन को लेकर राहुल की ये हिचकिचाहट बिहार की तरह कई प्रदेशों में पार्टी के लिए बुरे नतीजों का सबब बनी है.