World Hepatitis Day: किन कारणों से बढ़ता है हेपेटाइटिस का जोखिम?

0
154

28 जुलाई को World Hepatitis Day मनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये क्या होता है? हेपेटाइटिस एक गंभीर बीमारी है, जिसका कोई निश्चित इलाज नहीं है, इसे रोकने का का केवल एक ही तरीका है कि इसके बारे में सही जानकारी का प्रसार हो, क्योंकि खासतौर पर कम आय वाले देशों में यह स्वास्थ्य के प्रमुख चिंता के विषयों में से एक है। हेपेटाईटिस डे के इस वर्ष की थीम भी “मिसिंग द मिलियंस” है, जिसके तहत उन मिलियंस की संख्या में ऐसे लोगों तक पहुँच सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है जो हेपेटाइटिस से ग्रसित हैं लेकिन इसके बारे में अनभिज्ञ हैं।

World Hepatitis Day के बारे में कितना जानते हैं आप?

WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार तक़रीबन 52 मिलियन लोग भारत में हेपेटाइटिस बी और सी के साथ जी रहे हैं। यह निश्चित रूप से चिंताजनक आंकड़ा है, ज़रूरी है कि सबसे पहले हेपेटाइटिस के सभी प्रकारों और जोखिमों के बारे में जाना जाए, क्योंकि इसके लिए ली जाने वाली दवाइयां और वैक्सीनेशन तो हैं लेकिन यह भी जानना आवश्यक है कि किस स्टेज पर इसकी रोकथाम की जा सकती है।

नारायणा अस्पताल के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी कंसल्टेंट डॉक्टर नवीन कुमार ने बताया कि हेपेटाइटिस बी एक ऐसा लिवर का संक्रमण है जिसके परिणामस्वरुप लिवर फेलियर, अंगों का खराब होना आदि हो सकते हैं। ये मूल रूप से संक्रमित रक्त, सक्रमित व्यक्ति के शरीर से निकलने वाले किसी भी प्रकार के द्रव के संपर्क में आने से हो सकता है, यानी व्यवहारिक रूप से इसके फैलने के कई कारण हो सकते हैं। यदि व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है और वयस्क उम्र में इसकी चपेट में आया है तो बहुत मुमकिन है कि वह इस पर जीत पा ले, लेकिन सही समय पर इलाज न मिलने और पैदाइशी होने पर यह जीवन पर्यन्त रह सकता है। हेपेटाईटिस बी के उपचार के विषय में यदि आपको थोड़ा सा भी लक्षण महसूस होते हैं तुरंत डॉक्टर की सलाह लें क्योंकि ऐसे में मुमकिन है कि इसके गंभीर रूप में आने से पहले डॉक्टर आपको एक प्रकार की वैक्सीन दे जिससे रोग से लड़ने के लिए शरीर में प्रतिरोधक तैयार हो और आप ठीक हो जाए।

World Hepetits Day

श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के चीफ ऑफ़ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलोजी डॉ मोनिका जैन ने बताया कि लिवर एक तरह से हमारे शरीर का इंजन है, इसका काम केवल खाना पचाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि शरीर की इम्युनिटी तक इसपर निर्भर करती है। यदि इसमें किसी प्रकार की खराबी या परेशानी आगई तो शरीर के बहुत से संचालन प्रभावित हो जाते हैं, इसका विशेष ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। हेपेटाईटिस ई, यह रोग दूषित खाने और दूषित पानी पीने से होता है। इसकी शुरुआत में बुखार फिर धीरे-धीरे चक्कर फिर उल्टियां आना, उसके बाद पीलिया जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

हेपेटाईटिस ई तकरीबन 99 फ़ीसदी मरीज़ों में पूरी तरह ठीक हो जाता है, इसकी अवधि तकरीबन 4 से 6 हफ्ते की होती है, और लक्षणों के आधार पर इलाज के तरीके तय किये जाते हैं। हेपेटाईटिस सी, इस रोग का मूल रास्ता रक्त के ज़रिये माना जा सकता है, ऐसे में यह अनुवांशिक हो सकता है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किये गए ब्लेड, सुई आदि को इस्तेमाल करने पर फ़ैल सकता है। यह हेपेटाईटिस बी की तुलना में स्लो वायरस है जिसके शुरुआत में कोई लक्षण नज़र नहीं आते, और जिसका पता किसी अन्य कारणों से होने वाली जांच (पीएसी, एग्ज़िक्युटिव चेक अप, प्री डिलीवरी चेक अप) में पता चलता है।

यह भी पढ़ें- World Brain Day: तन और मन के साथ मस्तिष्क को समझना क्यों है जरूरी?