Mirabai in Hindi- मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत थीं, जिनका सब कुछ कृष्ण के लिए समर्पित था. वे कृष्ण जी से बहुत प्रेम करती थीं. यहां तक कि कृष्ण को ही वे अपना पति मान बैठी थीं. भक्ति की ऐसी चरम अवस्था कम ही देखने को मिलती है. Meerabai एक राजपूत राजकुमारी थी जो उत्तरी भारत के राजस्थान राज्य में रहती थी. वे भगवान कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थीं. और मीराबाई को प्रेमभक्ति का अग्रणी प्रतिपादक कहा जाता है. उन्होंने कृष्ण की प्रशंशा में व्रज भाषा और राजस्थानी भाषा में भजन गाये थे.
रोचक सफर में आज हम आपको Meerabai के जीवन से जुड़ी कुछ बातें बताएंगे जिन्हें सुनकर आपको लगेगा कि प्रेम और भक्ति पवित्र होनी चाहिए. तो चलिए जानते हैं मीराबाई के भक्तिविभोर जीवन काल से जुड़ी कुछ बातें…..
1. मीरा बाई का जन्म 1504 ई. में राजस्थान के मेड़ता जिले के चौकरी गाँव में हुआ था. उनके पिता रतन सिंह, जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी राठौड़ के वंशज, राव दुदा के पुत्र थे.
2. मीरा बाई को उनके दादाजी ने पाला था. शाही परिवारों के रीती-रिवाजों के अनुसार उनकी शिक्षा में शास्त्रों का ज्ञान, संगीत, तीरंदाजी, तलवारबाजी, घुड़सवारी और रथ चलाना आता था.
3. उन्हें युद्ध की आपदा आने पर अस्र-शस्र चलाना भी सिखाया गया था. हालंकि इन सबके साथ उनका बचपन कृष्ण चेतना के वातावरण में बीता जिसके कारण उनका जीवन भक्ति की ओर मुड़ गया.
4. जब मीरा केवल चार वर्ष की थीं तब से अपना समय कृष्ण भक्ति में व्यतीत करने लगीं. मीराबाई ने एक दिन उनके घर के बाहर एक विवाह सामारोह देखा जिसमें उसने सुंदर वेश में दुल्हे को देखकर अपनी माँ से पूछा “माँ मेरा दूल्हा कौन बनेगा ??”.
5. मीरा बाई की माँ ने कृष्ण भगवान की तस्वीर की तरफ देखकर कहा “मेरी प्यारी मीरा, भगवान कृष्ण तुम्हारे दूल्हा बनेगे“. इस बात के कुछ दिनों बाद मीराबाई की माँ का देहांत हो गया. जैसे-जैसे मीरा की उम्र बढ़ती गयी उन्हें ये लगने लगा कि कृष्ण उनसे विवाह करेंगे. इस दौरान उन्होने कृष्णजी को अपना पति मान लिया.
6. मीराबाई प्रतिभाशाली, मृदुभाषी, और मधुर आवाज में गाती थी. उस समय में सबसे सुंदर महिला के रूप में प्रसिद्ध थीं और उसकी सुन्दरता की खबर आप-पास के राज्यों में फ़ैल गयी.
7. मीराबाई की प्रसिद्धी को देखकर राणा सांगा अपने पुत्र भोजराज का विवाह मीरा बाई से करने के लिए राव दुदा से मिले. राव दुदा राजी हो गये लेकिन मीरा कृष्ण प्रेम में लीन होने के कारण किसी अन्य पुरुष से विवाह नहीं करना चाहती थी. विरोध करने के बजाय अपने दादाजी की बात रखने के लिए उन्होंने भोजराज से विवाह कर लिया.
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8. 1513 में मीरा बाई का राणा कुम्भा (भोजराज) से 14 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया और वो राणा कुम्भा के साथ चित्तोडगढ चली गयी. अपने घर के कामकाज निपटाने के बाद मीरा बाई रोज कृष्ण मन्दिर में जाती थीं और भगवान कृष्ण के सामने नाचती और गाती थी.
9. रानाडे कुम्भा की माँ को उनका यह व्यवहार पसंद नही आता था. मीरा बाई की सास ने उसे दुर्गा की पूजा करने को बाध्य किया लेकिन मीरा ने मना करते हुए कहा “मैंने अपना जीवन पहले ही कृष्ण को समर्पित कर दिया है”.
10. मीरा बाई की ननद ने मीरा को बदनाम करने के लिए एक षड्यंत्र रचा. उसने राणा कुम्भा को बताया कि मीरा किसी से गुप्त रूप से प्रेम करती है और उसने मीरा को मंदिर में उसके साथ बात करते हुए देखा है. इस बात को सुनते ही महल की औरतें बड़बड़ाने लगीं कि मीरा राणा परिवार की साख पर कलंक है.
11. इन बातों से गुस्सा होकर कुम्भा तलवार हाथ में लिए दौड़ता हुआ, मीरा के पास पहुंचा लेकिन सयोंगवश मीरा उस समय मंदिर गयी हुयी थी. एक शांत रिश्तेदार ने राणा कुम्भा को सलाह दी कि “राणा, तुम अपने जल्दबाजी में लिए निर्णय के लिए पछताओगे, पहले आरोपों की जांच करो और तुम्हे सत्य का पता चल जाएगा.
12. मीरा भगवान की भक्त है, याद करो तुमने उसका हाथ थामा था, इर्ष्या के कारण कुछ औरतों ने मीरा के विरुद्ध साजिश रचकर तुम्हे भड़काया है ताकि तुम उसे खत्म कर दो”.
13. कुम्भा शांत हो गया और अपनी बहन के साथ मध्य रात्री को उस मन्दिर में गया. राणा दरवाजा खोलकर दौड़ता हुआ अंदर गया और उसने मीरा को अकेले में अपने मूर्ति से बात करते और गाना गाते देखा.
14. राणा ने चिल्लाते हुए मीरा से कहा “मीरा अपने प्रेमी को मुझे दिखाओ जिससे तुम बात कर रही हो”. मीरा ने जवाब दिया “वो सामने मेरे भगवान बैठे हुए हैं जिन्होंने मेरा दिल चुराया है”. राणा मीरा के कृष्ण प्रेम को समझ गया.
15. इसके बाद कई बार औरतों ने मीरा के खिलाफ साजिशें रचीं लेकिन मीरा का बाल भी बांका नही हुआ. मीरा अपने परिवार के समक्ष सदैव शांत रहती थी. जब भी कोई उनके वैवाहिक जीवन के बारे में पूछता वो वो कृष्ण को अपना पति बताती थी. राणा कुभा का अब दिल टूट गया लेकिन वो जीवनपर्यन्त मीरा के साथ अच्छे पति की तरह रहे.
16. मीरा को एक दिन एक टोकरी में सांप रखकर भेजा और ये सन्देश देकर भेजा कि इसमें फूलों की माला है. मीरा ने ध्यान करने के बाद जब उस टोकरी को खोला तो उसमे फूलों की माला पहने हुए श्री कृष्ण की मूर्ति थी.
17. मीरा के देवर ने अमृत का प्याला कहकर उसको जहर का प्याला भेजा. फिर मीरा ने उसको भगवान कृष्ण को चढ़ाया और उसे प्रसाद के रूप में पी लिया और वो वास्तव में अमृत बन गया था.
18. उसके लिए भेजा कीलों का बिस्तर गुलाब के बिस्तर में बदल गया. जब यातनाओं का सिलसिला काफी बढ़ गया तब मीरा ने गोस्वामी तुलसीदास को पत्र भेजा और उनसे सलाह मांगी.
19. उसने पत्र में लिखा “मुझे मेरे रिश्तेदार लगातार यातना दे रहे हैं लेकिन मैं कृष्ण की आरधना करना नहीं छोड़ सकती. लेकिन मैं अब इस महल में भक्ति अभ्यास नहीं कर सकती. मैंने बचपन से गिरधर गोपाल को अपना मित्र बना लिया था और मैं अब उनसे इतनी जुड़ गयी हुँ कि कोई भी ये बंधन नही तोड़ सकता”.
20. पत्र के जवाब में तुलसीदास ने जवाब दिया “उन लोगों को त्याग दो जो तुम्हे नहीं समझते और तुम्हें आराधना नहीं करने देते चाहे वह तुम्हारा प्रिय रिश्तेदार ही क्यों ना हो. प्रहलाद ने भक्ति के लिए अपने पिता को छोड़ दिया, विभीषन ने रामभक्ति के लिए अपने भाई रावण को त्याग दिया, भरत ने अपनी माँ को त्याग दिया, बाली ने अपने गुरु को त्याग दिया, व्रज की गोपस्थ्री ने कृष्ण के लिए अपने पति को त्याग दिया. ये सब करके वो अपने जीवन से खुश थे. भगवान से संबंध और प्रेम ही सत्य और अनन्त है बाकि सब रिश्ते अस्थायी हैं”.
21. मीरा बाई के जीवन में नया मोड़ तब आया जब एक बार अकबर और उसका दरबारी संगीतकार तानसेन भेष बदलकर मीरा के भजन सुनने के लिए चित्तौड़ आये. दोनों मन्दिर में प्रवेश कर गये और मीरा के भजन सुनने लगे और जैसे ही मीरा जाने लगीं उन्होंने मीरा के पवित्र चरणों को छुआ और अनमोल रत्न से बना गले का हार मूर्ति के आगे रख दिया.
22. इस बात की खबर किसी तरह कुम्भा तक पहुँची कि अकबर ने मीरा के पैर छुए और गले का हार उपहार में दिया. राणा ने उग्र होकर मीरा बाई से कहा “नदी में जाकर डूब मरो और फिर कभी अपना चेहरा मुझे मत दिखाना, तुमने मेरे परिवार का अपमान किया है”.
23. मीरा ने राणा की आज्ञा मानते हुए नदी में डूबने के लिए रवाना हो गयी और रास्ते में झूमते नाचते हुए भगवान कृष्ण का नाम लेने लगी. जब उसने अपना पैर नदी में रखने के लिये उठाया तभी एक हाथ ने उसे पीछे खींच लिया.
24. जब मीरा पीछे मुड़ी तो देखा कि गिरधारी कृष्ण उनके सामने खड़े थे. और उनको देखते ही वो बेहोश हो गयीं. जब उसे होश आया तब भगवान कृष्ण ने मुस्कुराते हुए मीरा से कहा “मेरी प्रिय मीरा, तुम्हारा जीवन तुम्हारे नश्वर रिश्तेदारों से खत्म हो गया है अब तुम स्वतंत्र हो, आनंद मनाओ, तुम हमेशा मेरी रहोगी”.
25. मीरा राजस्थान के गर्म रेतीली जमीन पर नंगे पैर चलीं. रास्ते में उसे कई औरतें, बच्चे और भक्तों ने उनका निरादर किया. फिर वह वृन्दावन पहुंच गयीं और फिर रेदास से मिली.
26. वृन्दावन में वे गोविन्द मंदिर में पूजा करने लग गयीं, तब से ये जगह विश्व भर के श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्थान बन गया. पश्चाताप करता हुआ कुम्भा वृन्दावन मीरा को देखने पहुंचा और प्रार्थना करते हुए उसके बुरे व्यवहार के लिए क्षमा माँगी.
27. उसने मीरा से वापस अपने राज्य लौट जाने की विनती की और उसे फिर से अपनी रानी बनने के लिए कहा. मीरा ने राणा से कहा कि अब कृष्ण ही उनके राजा हैं और अपना जीवन उनके साथ ही व्यतीत करेगीं. कुम्भा समझ गया कि अब मीरा उनके वश में नहीं हैं और बदले जीवन के साथ वृन्दावन से चला गया.
28. मीरा की ख्याति दूर दूर तक फ़ैल गयी और वो दिन रात सत्संग में लीन हो गयीं. कुम्भा के अनेक बार आग्रह करने पर मीरा फिर मेवाड़ लौट आयीं और कुम्भा ने उसकी सहमती स्वीकार करी कि वो कृष्ण के मंदिर में रहेगी.
29. मेवाड़ से एक बार फिर कुम्भा के साथ वृन्दावन और द्वारका गयीं. कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर मीरा कृष्ण के भजनों पर नाच रही थीं और जब भजन खत्म हो गया तो कुम्भा ने उनसे वापस चलने को कहा.
30. मीरा नाचते हुए गिरधारी के चरणों में गिर गयीं और कहने लगी “हे गिरधारी क्या तुम मुझे बुला रहे हो, मैं आ रही हुं“. जब कुम्भा ने ये देखा तभी एक बीजली चमकी और मन्दिर के दरवाजे अपने आप बंद हो गये. जब दरवाजा खुला तो भगवान कृष्ण की मूंर्ति पर मीरा की साड़ी लिपटी हुयी थी और वहां पर केवल बांसुरी की आवाज आ रही थी.
31. कृष्ण भक्त मीराबाई की मौत एक रहस्य है. उनके जीवन पूरा होने का कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं मिलता लेकिन इसके बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत है. लूनवा के भूरदान ने मीरा की मौत 1546 में बताई. वहीं डॉ. शेखावत के अनुसार मीरा की मृत्यु 1548 में हुई.
32. मीरा बाई पर बने कुछ प्रसिद्ध भजन कुछ इस प्रकार है (Mirabai Bhajan)
• ऐसी लागी लगन मीरा हो गयी मगन • पायो जी मैंने राम रतन धन पायो • जो तुम छोड़ो मैं नही छोडू रे , तोसे प्रीत जोड़ी कृष्ण , कुन संग जोडू रे • हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय • होरी खेलत हैं गिरधारी, मुरली चंग बजत डफ न्यारो, संग जुबती ब्रजनारी • श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया • बसो मेरे नैनन में नंदलाल
यह भी पढ़ें : क्या है Tulsi की महत्वता ? घर में क्यों लगाना चाहिए तुलसी पौधा ?
Mirabai in Hindi- मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत थीं, जिनका सब कुछ कृष्ण के लिए समर्पित था. वे कृष्ण जी से बहुत प्रेम करती थीं. यहां तक कि कृष्ण को ही वे अपना पति मान बैठी थीं. भक्ति की ऐसी चरम अवस्था कम ही देखने को मिलती है. Meerabai एक राजपूत राजकुमारी थी जो उत्तरी भारत के राजस्थान राज्य में रहती थी. वे भगवान कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थीं. और मीराबाई को प्रेमभक्ति का अग्रणी प्रतिपादक कहा जाता है. उन्होंने कृष्ण की प्रशंशा में व्रज भाषा और राजस्थानी भाषा में भजन गाये थे.
रोचक सफर में आज हम आपको Meerabai के जीवन से जुड़ी कुछ बातें बताएंगे जिन्हें सुनकर आपको लगेगा कि प्रेम और भक्ति पवित्र होनी चाहिए. तो चलिए जानते हैं मीराबाई के भक्तिविभोर जीवन काल से जुड़ी कुछ बातें…..
1. मीरा बाई का जन्म 1504 ई. में राजस्थान के मेड़ता जिले के चौकरी गाँव में हुआ था. उनके पिता रतन सिंह, जोधपुर के संस्थापक राव जोधा जी राठौड़ के वंशज, राव दुदा के पुत्र थे.
2. मीरा बाई को उनके दादाजी ने पाला था. शाही परिवारों के रीती-रिवाजों के अनुसार उनकी शिक्षा में शास्त्रों का ज्ञान, संगीत, तीरंदाजी, तलवारबाजी, घुड़सवारी और रथ चलाना आता था.
3. उन्हें युद्ध की आपदा आने पर अस्र-शस्र चलाना भी सिखाया गया था. हालंकि इन सबके साथ उनका बचपन कृष्ण चेतना के वातावरण में बीता जिसके कारण उनका जीवन भक्ति की ओर मुड़ गया.
4. जब मीरा केवल चार वर्ष की थीं तब से अपना समय कृष्ण भक्ति में व्यतीत करने लगीं. मीराबाई ने एक दिन उनके घर के बाहर एक विवाह सामारोह देखा जिसमें उसने सुंदर वेश में दुल्हे को देखकर अपनी माँ से पूछा “माँ मेरा दूल्हा कौन बनेगा ??”.
5. मीरा बाई की माँ ने कृष्ण भगवान की तस्वीर की तरफ देखकर कहा “मेरी प्यारी मीरा, भगवान कृष्ण तुम्हारे दूल्हा बनेगे“. इस बात के कुछ दिनों बाद मीराबाई की माँ का देहांत हो गया. जैसे-जैसे मीरा की उम्र बढ़ती गयी उन्हें ये लगने लगा कि कृष्ण उनसे विवाह करेंगे. इस दौरान उन्होने कृष्णजी को अपना पति मान लिया.
6. मीराबाई प्रतिभाशाली, मृदुभाषी, और मधुर आवाज में गाती थी. उस समय में सबसे सुंदर महिला के रूप में प्रसिद्ध थीं और उसकी सुन्दरता की खबर आप-पास के राज्यों में फ़ैल गयी.
7. मीराबाई की प्रसिद्धी को देखकर राणा सांगा अपने पुत्र भोजराज का विवाह मीरा बाई से करने के लिए राव दुदा से मिले. राव दुदा राजी हो गये लेकिन मीरा कृष्ण प्रेम में लीन होने के कारण किसी अन्य पुरुष से विवाह नहीं करना चाहती थी. विरोध करने के बजाय अपने दादाजी की बात रखने के लिए उन्होंने भोजराज से विवाह कर लिया.
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8. 1513 में मीरा बाई का राणा कुम्भा (भोजराज) से 14 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया और वो राणा कुम्भा के साथ चित्तोडगढ चली गयी. अपने घर के कामकाज निपटाने के बाद मीरा बाई रोज कृष्ण मन्दिर में जाती थीं और भगवान कृष्ण के सामने नाचती और गाती थी.
9. रानाडे कुम्भा की माँ को उनका यह व्यवहार पसंद नही आता था. मीरा बाई की सास ने उसे दुर्गा की पूजा करने को बाध्य किया लेकिन मीरा ने मना करते हुए कहा “मैंने अपना जीवन पहले ही कृष्ण को समर्पित कर दिया है”.
10. मीरा बाई की ननद ने मीरा को बदनाम करने के लिए एक षड्यंत्र रचा. उसने राणा कुम्भा को बताया कि मीरा किसी से गुप्त रूप से प्रेम करती है और उसने मीरा को मंदिर में उसके साथ बात करते हुए देखा है. इस बात को सुनते ही महल की औरतें बड़बड़ाने लगीं कि मीरा राणा परिवार की साख पर कलंक है.
11. इन बातों से गुस्सा होकर कुम्भा तलवार हाथ में लिए दौड़ता हुआ, मीरा के पास पहुंचा लेकिन सयोंगवश मीरा उस समय मंदिर गयी हुयी थी. एक शांत रिश्तेदार ने राणा कुम्भा को सलाह दी कि “राणा, तुम अपने जल्दबाजी में लिए निर्णय के लिए पछताओगे, पहले आरोपों की जांच करो और तुम्हे सत्य का पता चल जाएगा.
12. मीरा भगवान की भक्त है, याद करो तुमने उसका हाथ थामा था, इर्ष्या के कारण कुछ औरतों ने मीरा के विरुद्ध साजिश रचकर तुम्हे भड़काया है ताकि तुम उसे खत्म कर दो”.
13. कुम्भा शांत हो गया और अपनी बहन के साथ मध्य रात्री को उस मन्दिर में गया. राणा दरवाजा खोलकर दौड़ता हुआ अंदर गया और उसने मीरा को अकेले में अपने मूर्ति से बात करते और गाना गाते देखा.
14. राणा ने चिल्लाते हुए मीरा से कहा “मीरा अपने प्रेमी को मुझे दिखाओ जिससे तुम बात कर रही हो”. मीरा ने जवाब दिया “वो सामने मेरे भगवान बैठे हुए हैं जिन्होंने मेरा दिल चुराया है”. राणा मीरा के कृष्ण प्रेम को समझ गया.
15. इसके बाद कई बार औरतों ने मीरा के खिलाफ साजिशें रचीं लेकिन मीरा का बाल भी बांका नही हुआ. मीरा अपने परिवार के समक्ष सदैव शांत रहती थी. जब भी कोई उनके वैवाहिक जीवन के बारे में पूछता वो वो कृष्ण को अपना पति बताती थी. राणा कुभा का अब दिल टूट गया लेकिन वो जीवनपर्यन्त मीरा के साथ अच्छे पति की तरह रहे.
16. मीरा को एक दिन एक टोकरी में सांप रखकर भेजा और ये सन्देश देकर भेजा कि इसमें फूलों की माला है. मीरा ने ध्यान करने के बाद जब उस टोकरी को खोला तो उसमे फूलों की माला पहने हुए श्री कृष्ण की मूर्ति थी.
17. मीरा के देवर ने अमृत का प्याला कहकर उसको जहर का प्याला भेजा. फिर मीरा ने उसको भगवान कृष्ण को चढ़ाया और उसे प्रसाद के रूप में पी लिया और वो वास्तव में अमृत बन गया था.
18. उसके लिए भेजा कीलों का बिस्तर गुलाब के बिस्तर में बदल गया. जब यातनाओं का सिलसिला काफी बढ़ गया तब मीरा ने गोस्वामी तुलसीदास को पत्र भेजा और उनसे सलाह मांगी.
19. उसने पत्र में लिखा “मुझे मेरे रिश्तेदार लगातार यातना दे रहे हैं लेकिन मैं कृष्ण की आरधना करना नहीं छोड़ सकती. लेकिन मैं अब इस महल में भक्ति अभ्यास नहीं कर सकती. मैंने बचपन से गिरधर गोपाल को अपना मित्र बना लिया था और मैं अब उनसे इतनी जुड़ गयी हुँ कि कोई भी ये बंधन नही तोड़ सकता”.
20. पत्र के जवाब में तुलसीदास ने जवाब दिया “उन लोगों को त्याग दो जो तुम्हे नहीं समझते और तुम्हें आराधना नहीं करने देते चाहे वह तुम्हारा प्रिय रिश्तेदार ही क्यों ना हो. प्रहलाद ने भक्ति के लिए अपने पिता को छोड़ दिया, विभीषन ने रामभक्ति के लिए अपने भाई रावण को त्याग दिया, भरत ने अपनी माँ को त्याग दिया, बाली ने अपने गुरु को त्याग दिया, व्रज की गोपस्थ्री ने कृष्ण के लिए अपने पति को त्याग दिया. ये सब करके वो अपने जीवन से खुश थे. भगवान से संबंध और प्रेम ही सत्य और अनन्त है बाकि सब रिश्ते अस्थायी हैं”.
21. मीरा बाई के जीवन में नया मोड़ तब आया जब एक बार अकबर और उसका दरबारी संगीतकार तानसेन भेष बदलकर मीरा के भजन सुनने के लिए चित्तौड़ आये. दोनों मन्दिर में प्रवेश कर गये और मीरा के भजन सुनने लगे और जैसे ही मीरा जाने लगीं उन्होंने मीरा के पवित्र चरणों को छुआ और अनमोल रत्न से बना गले का हार मूर्ति के आगे रख दिया.
22. इस बात की खबर किसी तरह कुम्भा तक पहुँची कि अकबर ने मीरा के पैर छुए और गले का हार उपहार में दिया. राणा ने उग्र होकर मीरा बाई से कहा “नदी में जाकर डूब मरो और फिर कभी अपना चेहरा मुझे मत दिखाना, तुमने मेरे परिवार का अपमान किया है”.
23. मीरा ने राणा की आज्ञा मानते हुए नदी में डूबने के लिए रवाना हो गयी और रास्ते में झूमते नाचते हुए भगवान कृष्ण का नाम लेने लगी. जब उसने अपना पैर नदी में रखने के लिये उठाया तभी एक हाथ ने उसे पीछे खींच लिया.
24. जब मीरा पीछे मुड़ी तो देखा कि गिरधारी कृष्ण उनके सामने खड़े थे. और उनको देखते ही वो बेहोश हो गयीं. जब उसे होश आया तब भगवान कृष्ण ने मुस्कुराते हुए मीरा से कहा “मेरी प्रिय मीरा, तुम्हारा जीवन तुम्हारे नश्वर रिश्तेदारों से खत्म हो गया है अब तुम स्वतंत्र हो, आनंद मनाओ, तुम हमेशा मेरी रहोगी”.
25. मीरा राजस्थान के गर्म रेतीली जमीन पर नंगे पैर चलीं. रास्ते में उसे कई औरतें, बच्चे और भक्तों ने उनका निरादर किया. फिर वह वृन्दावन पहुंच गयीं और फिर रेदास से मिली.
26. वृन्दावन में वे गोविन्द मंदिर में पूजा करने लग गयीं, तब से ये जगह विश्व भर के श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्थान बन गया. पश्चाताप करता हुआ कुम्भा वृन्दावन मीरा को देखने पहुंचा और प्रार्थना करते हुए उसके बुरे व्यवहार के लिए क्षमा माँगी.
27. उसने मीरा से वापस अपने राज्य लौट जाने की विनती की और उसे फिर से अपनी रानी बनने के लिए कहा. मीरा ने राणा से कहा कि अब कृष्ण ही उनके राजा हैं और अपना जीवन उनके साथ ही व्यतीत करेगीं. कुम्भा समझ गया कि अब मीरा उनके वश में नहीं हैं और बदले जीवन के साथ वृन्दावन से चला गया.
28. मीरा की ख्याति दूर दूर तक फ़ैल गयी और वो दिन रात सत्संग में लीन हो गयीं. कुम्भा के अनेक बार आग्रह करने पर मीरा फिर मेवाड़ लौट आयीं और कुम्भा ने उसकी सहमती स्वीकार करी कि वो कृष्ण के मंदिर में रहेगी.
29. मेवाड़ से एक बार फिर कुम्भा के साथ वृन्दावन और द्वारका गयीं. कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर मीरा कृष्ण के भजनों पर नाच रही थीं और जब भजन खत्म हो गया तो कुम्भा ने उनसे वापस चलने को कहा.
30. मीरा नाचते हुए गिरधारी के चरणों में गिर गयीं और कहने लगी “हे गिरधारी क्या तुम मुझे बुला रहे हो, मैं आ रही हुं“. जब कुम्भा ने ये देखा तभी एक बीजली चमकी और मन्दिर के दरवाजे अपने आप बंद हो गये. जब दरवाजा खुला तो भगवान कृष्ण की मूंर्ति पर मीरा की साड़ी लिपटी हुयी थी और वहां पर केवल बांसुरी की आवाज आ रही थी.
31. कृष्ण भक्त मीराबाई की मौत एक रहस्य है. उनके जीवन पूरा होने का कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं मिलता लेकिन इसके बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत है. लूनवा के भूरदान ने मीरा की मौत 1546 में बताई. वहीं डॉ. शेखावत के अनुसार मीरा की मृत्यु 1548 में हुई.
32. मीरा बाई पर बने कुछ प्रसिद्ध भजन कुछ इस प्रकार है (Mirabai Bhajan)
• ऐसी लागी लगन मीरा हो गयी मगन • पायो जी मैंने राम रतन धन पायो • जो तुम छोड़ो मैं नही छोडू रे , तोसे प्रीत जोड़ी कृष्ण , कुन संग जोडू रे • हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय • होरी खेलत हैं गिरधारी, मुरली चंग बजत डफ न्यारो, संग जुबती ब्रजनारी • श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया • बसो मेरे नैनन में नंदलाल
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