आजाद भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की छवि आम भारतीयों में बहुत खास है। हर किसी के मन में इंदिरा गांधी के लिए काफी इज्जत का भाव है और उनका जीवन परिचय भी काफी रोचक है। इंदिरा गांधी से जुड़े कई महत्वपूर्ण वाक्या है जिसमें साल 1975 के इमरजेंसी और ऑपरेशन ब्लूस्टार शामिल है लेकिन क्या आप जानते हैं कि वे इंदिरा नेहरू से इंदिरा गांधी कैसे बनी थीं ? आजादी के पहले इंदिरा गांधी की कॉलेज लाइफ चल रही थी तब उन्होने एक युवा के तौर पर काफी एन्जॉय किया लेकिन बाद में उनका देश के प्रति अलग ही योगदान रहा। यहां हम आपको Indira Gandhi Biography के बारे में बताएंगे, जिसे एक भारतीय होने के तौर पर आपको जानना चाहिए।
इंदिरा गांधी का प्रारंभिक जीवन | Indira Gandhi Biography
19 नवंबर, 1917 को उत्तर-प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मी इंदिरा प्रियदर्शनी को उनके माता पिता ‘इंदु’ कहकर पुकारते थे। इनके पिता आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे और इनकी मां एक समाजसेविका कमला नेहरू थीं। अपने माता-पिता की इंदिरा एकलौती संतान थीं इस वजह से इनका लालन-पोषण बहुत ही लाड-प्यार से हुआ था। नेहरू जी ने इंदिरा को राजनीति के सभी दाव-पेज सिखाए और इसके साथ ही आजादी की लड़ाई के दौर में भी इंदिरा बड़ी हो रही थीं। अपने पिता को आजादी की लड़ाई में कई बार जेल जाते देख इंदिरा के मन में भी देश के प्रति बहुत करने का जज्बा रहा है। इंदिरा गांधी ने पुणे के विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास किया और पश्चिम बंगाल के रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा स्थापित किए गए स्कूल शांतिनिकेतन से भी पढ़ाई की।
पिता जवाहरलाल नेहरू के साथ इंदिरा गांधी
इसके बाद वे स्विट्जरलैंड और लंदन में सोमेरविल्ले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई के लिए गईं। साल 1936 में उनकी मां कमला नेहरू ज्यादा बीमार पड़ गईं, पढाई के दिनों में ही इंदिरा ने स्विट्जरलैंड में कुछ महीने अपनी मां के साथ बिताया था। जब कमला नेहरू का निधन हुआ तब जवाहरलाल नेहरू भारतीय जेल में बंद थे। बचपन से ही वे अपने पिता के करीब तो रहीं लेकिन उनके पिता राजनैतिक व्यवस्तता के कारण इंदिरा को समय नहीं दे पाते थे और उनकी मां समाजसेविका के रूप में काम करती थीं फिर खराब स्वास्थ्य के कारण भी इंदिरा का समय उनके साथ नहीं बीत पाया था।
इंदिरा गांधी की शादी और पारिवारिक जीवन | Indira Gandhi Married Life
इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी
जब इंदिरा गांधी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में थी तब फिरोज गांधी भी वहां से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई कर रहे थे। दोनों की मुलाकात हुई लेकिन फिरोज गांधी पढ़ाई में व्यस्त रहते थे तो ज्यादा बातचीत नहीं हो पाती थी। 18 साल की उम्र में जब इंदिरा गांधी भारत आईं तो उनके पिता ने इंडियन नेशनल कांग्रेस ज्वाइन करवा दी, यहां पर फिरोज गांधी एक पत्रकार और यूथ कांग्रेस के अहम सदस्य थे। इसके अलावा उनकी मां की एक बार धरने के दौरान तबियत खराब हो गई थी तब फिरोज ही उन्हें घर लेकर आए और उनकी काफी देख-रेख की थी। इन सभी चीजों से फिरोज खान को इंदिरा गांधी पसंद करने लगीं। मगर जवाहरलाल नेहरू ने कभी फिरोज को पसंद नहीं किया और अपना दामाद नहीं बनाना चाहते थे। इंदिरा गांधी की जिद थी कि वे फिरोज से ही शादी करेंगी और पिता की असहमति के बाद भी उन्होंने फैसला कर लिया था। उस समय महात्मा गांधी नेहरू जी के सबसे करीब थे और उन्होने नेहरू जी को समझाया और फिरोज को गांधी सरनेम दिया। बहुत मनमुवाव होने के बाद इनकी शादी 16 मार्च, 1942 को इलाहाबाद के आनंद भवन में हुई थी।
इंदिरा गांधी का परिवार
फिरोज जहांगीर पारसी थे और इंदिरा हिंदू थीं ये बात लोगों को बहुत खली थी जो जवाहरलाल नेहरू को पंसद नहीं आ रही थी. मगर महात्मा गांधी ने इस जोड़ी को समर्थन देते हुए सार्वजनिक तौक पर बयान दिया, ”मैं अपमानजन पत्रों के लेखकों को अपने गुस्से को कम करने के लए कहना चाहता हूं। इस शादी में आकर नये जोड़े को आशीर्वाद दें उन्हें मैं आमंत्रित करता हूं।” साल 1944 में इंदिरा गांधी ने अपनी पहली संतान राजीव गांधी को जन्म दिया और फिर साल 1946 में संजय गांधी का जन्म हुआ। आजादी के पास नेहरू जी पहले प्रधानमंत्री बने और दिल्ली शिफ्ट हो गए। मगर फिरोज गांधी ने इलाहाबाद रुकने का फैसला किया क्योंकि वे नेशनल हेरल्ड में एडिटर के तौर पर काम कर रहे थे और इस न्यूज पेपर कंपनी को मोतीलाल नेहरू ने शुरु किया था।
बाद में इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी का विवाद होने लगा और दोनों बिना तलाक लिए अलग-अलग रहने लगे। साल 1960 में फिरोज का निधन हो गया और इंदिरा हमेशा के लिए दिल्ली में ही रह गईँ। इनके बेटे राजीव गांधी ने इटली की लड़की सोनिया गांधी से अपनी मां के खिलाफ जाकर शादी की थी जिसे अमिताभ बच्चन के माता-पिता हरिवंशराय बच्चन और तेजी बच्चन ने कराई थी। पहले बच्चन और गांधी परिवार के बीच बहुत करीबी हुआ करते थे। इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने मेनका गांधी के साथ शादी की थी। राजीव और सोनिया को दो बच्चे प्रियंका गांधी और राहुल गांधी हुए। वहीं संजय और मेनका को एक बेटा वरुण गांधी हैं।
इंदिरा गांधी का राजनैतिक करियर (Indira Gandhi Political Career)
इंदिरा गांधी
नेहरू परिवार भारत के केंद्र सरकार के मुख्य परिवार थे इसलिए इंदिरा गांधी का राजनीति में आना मुश्किल नहीं था। उन्होंने बचपन से ही महात्मा गांधी और अपने पिता को साथ में देखा था इसलिए उनकी रूचि राजनीति में आने की हमेशा से रही है। साल 1951-52 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपने पति फिरोज गांधी के लिए बहुत सी चुनावी सभाएं की थीं और उनके समर्थन में चलने वाले चुनावी अभियान का नेतृत्व भी किया। इस समय फिरोज रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे और वे उस समय के भ्रष्टाचार के युवा चेहरा बन गए थे और उन्होने कई भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश किया था। जिसमें वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी का नाम भी शामिल था जो जवाहरलाल नेहरू के करीबी थे। इन सबमें इंदिरा गांदधी ने अपने पति का साथ दिया। साल 1959 में इंदिरा को इंडियन नेशनल कांग्रेस का प्रेसिडेंट चुना गया और वो जवाहर लाल नेहरू की प्रमुख एडवाइजर टीम में शामिल हुईं।
27 मई, 1964 को जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद इंदिरा ने चुनाव लड़ा और जीत गईं। उन्हें लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में इनफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मंत्रालय में शामिल किया गया। 11 जनवरी, 1966 को लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद में देहांत होने के बाद अंतरिम चुनावों में इंदिरा को बहुमत हासिल हुई और वे प्रधानमंत्री बन गईं। प्रधानमंत्री के रूप में इन्होंने तीन बार जीत हासिल की थी। इंदिरा गांधी के कार्यकाल की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियां प्रिंसी पर्स के उन्मूलन के लिए प्रिंसिपल राज्यों के पूर्व शासकों और चार प्रीमियम तेल कंपनियों के साथ भारत के 14 बड़े बैंकों के 1969 राष्ट्रीयकरण के प्रस्तावों को पास करवाया। देश में खाद्य सामग्री को दूर करने में कई अहम कदम उठाए और देश को परमाणु युग में साल 1974 में भारत के पहले भूमिगत विस्फोट के साथ नेतृत्व किया था।
भारत-पाक प्रथम युद्ध में इंदिरा गांधी की भूमिका
देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
साल 1971 में इंदिरा गांधी को बहुत बड़े संकट का सामना करना पड़ा था। युद्ध की शुरुआत तब हुई जब पश्चिम पाकिस्तान की सेनाएं अपनी स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए बंगाली पूर्वी पाकिस्तान मे गई। इन्होने 31 मार्च को भयानक हिंसा के खिलाफ बात की लेकिन इसका प्रतिरोध जारी रहा और लाखों शरणार्थियों ने पड़ोसी देश भारत में प्रवेश करना शुरु कर दिया था और इनकी देखभाल में भारत आर्थिक संकट में आ गया, इस वजह से देश के अंदर भी तनाव बढ़ने लगा, हालांकि भारत ने वहां के लिए संघर्ष किया और स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन किया। पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में आम-जन अत्याचार करना शुरु किया और इसमे हिंदुओं को मुख्य रूप से लक्ष्य बनाया गया. भारत ने सैन्य सहायता प्रदान की और पश्चिम पाकिस्तान के खिलाड़ लड़ने के लिए भारतीय सैनिक को भेजा। 3 दिसंबर को पाकिस्ता ने जब भारत पर बमबारी करके युद्ध शुरु किया तब इंदिरा ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के महत्व को समझा और बांग्लादेश के निर्माण को समर्थन देने की घोषणा की। 9 दिसंबर को निक्सन ने यूएस के जलपोतों को भारत की तरफ रवाना करने का आदेश दिया और 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने आत्म-समर्पण किया।
16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पश्चिमी पाकिस्तान बनाम पूर्वी पाकिस्तान का युद्ध समाप्त हुआ और नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ। इस युद्ध में पाकिस्तान का घुटना टेकना ना सिर्फ बांग्लादेश और भारत के लिए बल्कि इंदिरा गांधी के लिए भी बड़ी जीत थी. इसके बाद इंदिरा गांधी ने एक भाषण दिया जिसमें कहा, ‘मैं ऐसी इंसान नहीं हूं, जो किसी भी दबाव में काम करे, फिर चाहे कोई व्यक्ति हो या कोई देश।’
भारत में आपातकाल लागू करना
देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
साल 1975 में विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़ती मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति पर इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ कई प्रदर्शन किए। उसी साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इंदिरा गांधी ने पिछले चुनाव के दौरान अवैध तरीकों का इस्तेमाल किया। इस फैसले को सुनने के बाद इंदिरा ने तुरंत अपनी सीट खाली करने का आदेश दिया। इस वजह से लोगों में उनके प्रति क्रोध बढ़ और श्रीमति गांधी को 26 जून, 1975 को इस्तिफा देना चाहिए था लेकिन उन्होने ऐसा नहीं करते हुए देश में आपातकाल घोषित करवा दिया।
आपातकाल के दौरान इंदिरा ने अपने सभी राजनीतिक दुश्मनों को कैद करवाया, उस समय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को रद्द कर दिया गया। गांधीवादी समाजवागी जया प्रकाश नारायण और उनके समर्थकों ने भारतीय समाज को बदलने के लिए ‘कुल अहिंसक क्रांति’ में छात्रों, किसानों और श्रम संगटनों को एकजुट करने की मांग की थी और बाद में नारायण को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। साल 1977 की शुरुआत में आपातकाल को हटाते हुए इंदिरा गांधी ने चुनावों की घोषणा करदी और उस समय जनता इंदिरा से आपातकाल और नसबंदी अभियान के कारण नारज थी तो उन्हें समर्थन नहीं किया। ऐसा माना जाता है कि आपात स्थिति में उनके छोटे बेटे संजय गांधी ने देश को पूर्ण अधिकार के सात चलाने की कोशिश की थी। झोपड़पट्टी हटाने के सख्त आदेश दिए और अलोकप्रिय नसबंदी कार्यक्रम को आगे बढाया। साल 1977 में इंदिरा ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि उन्होने विपक्ष को तोड़ दिया है। मोरारजी देसाई और जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में उभरने वाले जनता दल के गठबंधन ने उन्हें हरा दिया।
प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल
संजय गांधी के साथ इंदिरा गांधी
जनता पार्टी के सहयोगियों के मध्य के आंतरिक संघर्ष का इंदिरा ने फायदा उठाया। उस दौरान इंदिरा गांधी को संसद से निष्कासित करने के प्रयास में जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया। उनकी ये रणनीति उन लोगों के लिए खराब सिद्ध हुई और इससे इंदिरा गांधी को सहानुभूति मील और साल 1980 में हुए चुनावों में कांग्रेस एक विशाल बहुमत के साथ सत्ता में लौटी। साल 1981 में सितंबर महीने में एक सिख आतंकवादी समूह ‘खालिस्तान’ की मांग करने लगा था और इसी आतंकवादी समूह ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश किया था। मंदिर परिसर में हजारों नागरिकों की उपस्थिति में इंदिरा गांधी ने सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार करने का आदेश दे दिया। वहां पर आतंकियों का खात्मा हुआ लेकिन साथ ही हजारों निर्दोष लोगों की भी मौत हो गई थी। हमले के प्रभाव ने देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा दिया और कई सिखों ने विरोध में सशस्त्र और नागरिक प्रशासनिक कार्यालय में इस्तीफा दे दिया। इस पूरे घटनाक्रम में इंदिरा गांधी की छवि खराब होती गई।
इंदिरा गांधी की हत्या (Death of Indira Gandhi)
इंदिरा गांधी की अंतिम यात्रा
इंदिरा गांधी का बॉडीगार्ड सतवंत सिंह और बिंत सिंह सिख समुदाय से ही थे। उन्हें भी इंदिरा गांधी से नफरत होने लगी और उन्हें स्वर्ण मंदिर में होने वाले नरसंहार का बदला इंदिरा से लेना था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के ठीक 5 महीने बाद यानी 31 अक्टूबर, 1984 को मौका मिलते ही इंदिरा गांधी के बॉडीगार्ड्स सतवंत सिंह और बिंत सिंह ने इंदिरा गांधी को 31 बुलेट मारकर हत्या कर दी। ये घटना दिल्ली के सफदरगंज रोड पर हुई थी और इस हमले ने गांधी परिवार को तोड़ दिया। उस दौरान आपातकालीन स्थिति में इंदिरा के बड़े बेटे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया था।
इंदिरा गांधी की उपलब्धियां (Achievements of Indira Gandhi)
इंदिरा गांधी अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा और अन्य अधिकारी
नई दिल्ली में उनके घर को म्यूजियम बनाया या और इसे इंदिरा गांधी मेमोरियल म्यूजियम के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा दिल्ली में स्थित इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, मशहूर समुद्री ब्रिज पंबन ब्रिज भी इंदिरा रोड के नम पर ही है। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (IGNOU), इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी (अमरकंटक), इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इंदिरा गांधी ट्रेनिंग कॉलेज, इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जैसी कई संस्थाएं हैं।
साल 1971 में इंदिरा गांधी को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था और साल 1972 में बांग्लादेश को आजाद करवाने के लिए इन्हें मेक्सिकन अवॉर्ड दिया गया था। साल 1953 में यूएसए में मदर्स अवॉर्डज दिया गया। साल 1967 और 1968 में फ्रेंच इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन पोल के अनुसार वे फ्रेंच लोगों की पसंदीदा नेता थीं।
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आजाद भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की छवि आम भारतीयों में बहुत खास है। हर किसी के मन में इंदिरा गांधी के लिए काफी इज्जत का भाव है और उनका जीवन परिचय भी काफी रोचक है। इंदिरा गांधी से जुड़े कई महत्वपूर्ण वाक्या है जिसमें साल 1975 के इमरजेंसी और ऑपरेशन ब्लूस्टार शामिल है लेकिन क्या आप जानते हैं कि वे इंदिरा नेहरू से इंदिरा गांधी कैसे बनी थीं ? आजादी के पहले इंदिरा गांधी की कॉलेज लाइफ चल रही थी तब उन्होने एक युवा के तौर पर काफी एन्जॉय किया लेकिन बाद में उनका देश के प्रति अलग ही योगदान रहा। यहां हम आपको Indira Gandhi Biography के बारे में बताएंगे, जिसे एक भारतीय होने के तौर पर आपको जानना चाहिए।
इंदिरा गांधी का प्रारंभिक जीवन | Indira Gandhi Biography
19 नवंबर, 1917 को उत्तर-प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मी इंदिरा प्रियदर्शनी को उनके माता पिता ‘इंदु’ कहकर पुकारते थे। इनके पिता आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे और इनकी मां एक समाजसेविका कमला नेहरू थीं। अपने माता-पिता की इंदिरा एकलौती संतान थीं इस वजह से इनका लालन-पोषण बहुत ही लाड-प्यार से हुआ था। नेहरू जी ने इंदिरा को राजनीति के सभी दाव-पेज सिखाए और इसके साथ ही आजादी की लड़ाई के दौर में भी इंदिरा बड़ी हो रही थीं। अपने पिता को आजादी की लड़ाई में कई बार जेल जाते देख इंदिरा के मन में भी देश के प्रति बहुत करने का जज्बा रहा है। इंदिरा गांधी ने पुणे के विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास किया और पश्चिम बंगाल के रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा स्थापित किए गए स्कूल शांतिनिकेतन से भी पढ़ाई की।
पिता जवाहरलाल नेहरू के साथ इंदिरा गांधी
इसके बाद वे स्विट्जरलैंड और लंदन में सोमेरविल्ले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में आगे की पढ़ाई के लिए गईं। साल 1936 में उनकी मां कमला नेहरू ज्यादा बीमार पड़ गईं, पढाई के दिनों में ही इंदिरा ने स्विट्जरलैंड में कुछ महीने अपनी मां के साथ बिताया था। जब कमला नेहरू का निधन हुआ तब जवाहरलाल नेहरू भारतीय जेल में बंद थे। बचपन से ही वे अपने पिता के करीब तो रहीं लेकिन उनके पिता राजनैतिक व्यवस्तता के कारण इंदिरा को समय नहीं दे पाते थे और उनकी मां समाजसेविका के रूप में काम करती थीं फिर खराब स्वास्थ्य के कारण भी इंदिरा का समय उनके साथ नहीं बीत पाया था।
इंदिरा गांधी की शादी और पारिवारिक जीवन | Indira Gandhi Married Life
इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी
जब इंदिरा गांधी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में थी तब फिरोज गांधी भी वहां से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई कर रहे थे। दोनों की मुलाकात हुई लेकिन फिरोज गांधी पढ़ाई में व्यस्त रहते थे तो ज्यादा बातचीत नहीं हो पाती थी। 18 साल की उम्र में जब इंदिरा गांधी भारत आईं तो उनके पिता ने इंडियन नेशनल कांग्रेस ज्वाइन करवा दी, यहां पर फिरोज गांधी एक पत्रकार और यूथ कांग्रेस के अहम सदस्य थे। इसके अलावा उनकी मां की एक बार धरने के दौरान तबियत खराब हो गई थी तब फिरोज ही उन्हें घर लेकर आए और उनकी काफी देख-रेख की थी। इन सभी चीजों से फिरोज खान को इंदिरा गांधी पसंद करने लगीं। मगर जवाहरलाल नेहरू ने कभी फिरोज को पसंद नहीं किया और अपना दामाद नहीं बनाना चाहते थे। इंदिरा गांधी की जिद थी कि वे फिरोज से ही शादी करेंगी और पिता की असहमति के बाद भी उन्होंने फैसला कर लिया था। उस समय महात्मा गांधी नेहरू जी के सबसे करीब थे और उन्होने नेहरू जी को समझाया और फिरोज को गांधी सरनेम दिया। बहुत मनमुवाव होने के बाद इनकी शादी 16 मार्च, 1942 को इलाहाबाद के आनंद भवन में हुई थी।
इंदिरा गांधी का परिवार
फिरोज जहांगीर पारसी थे और इंदिरा हिंदू थीं ये बात लोगों को बहुत खली थी जो जवाहरलाल नेहरू को पंसद नहीं आ रही थी. मगर महात्मा गांधी ने इस जोड़ी को समर्थन देते हुए सार्वजनिक तौक पर बयान दिया, ”मैं अपमानजन पत्रों के लेखकों को अपने गुस्से को कम करने के लए कहना चाहता हूं। इस शादी में आकर नये जोड़े को आशीर्वाद दें उन्हें मैं आमंत्रित करता हूं।” साल 1944 में इंदिरा गांधी ने अपनी पहली संतान राजीव गांधी को जन्म दिया और फिर साल 1946 में संजय गांधी का जन्म हुआ। आजादी के पास नेहरू जी पहले प्रधानमंत्री बने और दिल्ली शिफ्ट हो गए। मगर फिरोज गांधी ने इलाहाबाद रुकने का फैसला किया क्योंकि वे नेशनल हेरल्ड में एडिटर के तौर पर काम कर रहे थे और इस न्यूज पेपर कंपनी को मोतीलाल नेहरू ने शुरु किया था।
बाद में इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी का विवाद होने लगा और दोनों बिना तलाक लिए अलग-अलग रहने लगे। साल 1960 में फिरोज का निधन हो गया और इंदिरा हमेशा के लिए दिल्ली में ही रह गईँ। इनके बेटे राजीव गांधी ने इटली की लड़की सोनिया गांधी से अपनी मां के खिलाफ जाकर शादी की थी जिसे अमिताभ बच्चन के माता-पिता हरिवंशराय बच्चन और तेजी बच्चन ने कराई थी। पहले बच्चन और गांधी परिवार के बीच बहुत करीबी हुआ करते थे। इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने मेनका गांधी के साथ शादी की थी। राजीव और सोनिया को दो बच्चे प्रियंका गांधी और राहुल गांधी हुए। वहीं संजय और मेनका को एक बेटा वरुण गांधी हैं।
इंदिरा गांधी का राजनैतिक करियर (Indira Gandhi Political Career)
इंदिरा गांधी
नेहरू परिवार भारत के केंद्र सरकार के मुख्य परिवार थे इसलिए इंदिरा गांधी का राजनीति में आना मुश्किल नहीं था। उन्होंने बचपन से ही महात्मा गांधी और अपने पिता को साथ में देखा था इसलिए उनकी रूचि राजनीति में आने की हमेशा से रही है। साल 1951-52 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपने पति फिरोज गांधी के लिए बहुत सी चुनावी सभाएं की थीं और उनके समर्थन में चलने वाले चुनावी अभियान का नेतृत्व भी किया। इस समय फिरोज रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे और वे उस समय के भ्रष्टाचार के युवा चेहरा बन गए थे और उन्होने कई भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश किया था। जिसमें वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी का नाम भी शामिल था जो जवाहरलाल नेहरू के करीबी थे। इन सबमें इंदिरा गांदधी ने अपने पति का साथ दिया। साल 1959 में इंदिरा को इंडियन नेशनल कांग्रेस का प्रेसिडेंट चुना गया और वो जवाहर लाल नेहरू की प्रमुख एडवाइजर टीम में शामिल हुईं।
27 मई, 1964 को जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद इंदिरा ने चुनाव लड़ा और जीत गईं। उन्हें लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में इनफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मंत्रालय में शामिल किया गया। 11 जनवरी, 1966 को लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद में देहांत होने के बाद अंतरिम चुनावों में इंदिरा को बहुमत हासिल हुई और वे प्रधानमंत्री बन गईं। प्रधानमंत्री के रूप में इन्होंने तीन बार जीत हासिल की थी। इंदिरा गांधी के कार्यकाल की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियां प्रिंसी पर्स के उन्मूलन के लिए प्रिंसिपल राज्यों के पूर्व शासकों और चार प्रीमियम तेल कंपनियों के साथ भारत के 14 बड़े बैंकों के 1969 राष्ट्रीयकरण के प्रस्तावों को पास करवाया। देश में खाद्य सामग्री को दूर करने में कई अहम कदम उठाए और देश को परमाणु युग में साल 1974 में भारत के पहले भूमिगत विस्फोट के साथ नेतृत्व किया था।
भारत-पाक प्रथम युद्ध में इंदिरा गांधी की भूमिका
देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
साल 1971 में इंदिरा गांधी को बहुत बड़े संकट का सामना करना पड़ा था। युद्ध की शुरुआत तब हुई जब पश्चिम पाकिस्तान की सेनाएं अपनी स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए बंगाली पूर्वी पाकिस्तान मे गई। इन्होने 31 मार्च को भयानक हिंसा के खिलाफ बात की लेकिन इसका प्रतिरोध जारी रहा और लाखों शरणार्थियों ने पड़ोसी देश भारत में प्रवेश करना शुरु कर दिया था और इनकी देखभाल में भारत आर्थिक संकट में आ गया, इस वजह से देश के अंदर भी तनाव बढ़ने लगा, हालांकि भारत ने वहां के लिए संघर्ष किया और स्वतंत्रता सेनानियों का समर्थन किया। पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में आम-जन अत्याचार करना शुरु किया और इसमे हिंदुओं को मुख्य रूप से लक्ष्य बनाया गया. भारत ने सैन्य सहायता प्रदान की और पश्चिम पाकिस्तान के खिलाड़ लड़ने के लिए भारतीय सैनिक को भेजा। 3 दिसंबर को पाकिस्ता ने जब भारत पर बमबारी करके युद्ध शुरु किया तब इंदिरा ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के महत्व को समझा और बांग्लादेश के निर्माण को समर्थन देने की घोषणा की। 9 दिसंबर को निक्सन ने यूएस के जलपोतों को भारत की तरफ रवाना करने का आदेश दिया और 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने आत्म-समर्पण किया।
16 दिसंबर, 1971 को ढाका में पश्चिमी पाकिस्तान बनाम पूर्वी पाकिस्तान का युद्ध समाप्त हुआ और नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ। इस युद्ध में पाकिस्तान का घुटना टेकना ना सिर्फ बांग्लादेश और भारत के लिए बल्कि इंदिरा गांधी के लिए भी बड़ी जीत थी. इसके बाद इंदिरा गांधी ने एक भाषण दिया जिसमें कहा, ‘मैं ऐसी इंसान नहीं हूं, जो किसी भी दबाव में काम करे, फिर चाहे कोई व्यक्ति हो या कोई देश।’
भारत में आपातकाल लागू करना
देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी
साल 1975 में विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़ती मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति पर इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ कई प्रदर्शन किए। उसी साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इंदिरा गांधी ने पिछले चुनाव के दौरान अवैध तरीकों का इस्तेमाल किया। इस फैसले को सुनने के बाद इंदिरा ने तुरंत अपनी सीट खाली करने का आदेश दिया। इस वजह से लोगों में उनके प्रति क्रोध बढ़ और श्रीमति गांधी को 26 जून, 1975 को इस्तिफा देना चाहिए था लेकिन उन्होने ऐसा नहीं करते हुए देश में आपातकाल घोषित करवा दिया।
आपातकाल के दौरान इंदिरा ने अपने सभी राजनीतिक दुश्मनों को कैद करवाया, उस समय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को रद्द कर दिया गया। गांधीवादी समाजवागी जया प्रकाश नारायण और उनके समर्थकों ने भारतीय समाज को बदलने के लिए ‘कुल अहिंसक क्रांति’ में छात्रों, किसानों और श्रम संगटनों को एकजुट करने की मांग की थी और बाद में नारायण को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। साल 1977 की शुरुआत में आपातकाल को हटाते हुए इंदिरा गांधी ने चुनावों की घोषणा करदी और उस समय जनता इंदिरा से आपातकाल और नसबंदी अभियान के कारण नारज थी तो उन्हें समर्थन नहीं किया। ऐसा माना जाता है कि आपात स्थिति में उनके छोटे बेटे संजय गांधी ने देश को पूर्ण अधिकार के सात चलाने की कोशिश की थी। झोपड़पट्टी हटाने के सख्त आदेश दिए और अलोकप्रिय नसबंदी कार्यक्रम को आगे बढाया। साल 1977 में इंदिरा ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि उन्होने विपक्ष को तोड़ दिया है। मोरारजी देसाई और जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में उभरने वाले जनता दल के गठबंधन ने उन्हें हरा दिया।
प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल
संजय गांधी के साथ इंदिरा गांधी
जनता पार्टी के सहयोगियों के मध्य के आंतरिक संघर्ष का इंदिरा ने फायदा उठाया। उस दौरान इंदिरा गांधी को संसद से निष्कासित करने के प्रयास में जनता पार्टी की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया। उनकी ये रणनीति उन लोगों के लिए खराब सिद्ध हुई और इससे इंदिरा गांधी को सहानुभूति मील और साल 1980 में हुए चुनावों में कांग्रेस एक विशाल बहुमत के साथ सत्ता में लौटी। साल 1981 में सितंबर महीने में एक सिख आतंकवादी समूह ‘खालिस्तान’ की मांग करने लगा था और इसी आतंकवादी समूह ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश किया था। मंदिर परिसर में हजारों नागरिकों की उपस्थिति में इंदिरा गांधी ने सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार करने का आदेश दे दिया। वहां पर आतंकियों का खात्मा हुआ लेकिन साथ ही हजारों निर्दोष लोगों की भी मौत हो गई थी। हमले के प्रभाव ने देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा दिया और कई सिखों ने विरोध में सशस्त्र और नागरिक प्रशासनिक कार्यालय में इस्तीफा दे दिया। इस पूरे घटनाक्रम में इंदिरा गांधी की छवि खराब होती गई।
इंदिरा गांधी की हत्या (Death of Indira Gandhi)
इंदिरा गांधी की अंतिम यात्रा
इंदिरा गांधी का बॉडीगार्ड सतवंत सिंह और बिंत सिंह सिख समुदाय से ही थे। उन्हें भी इंदिरा गांधी से नफरत होने लगी और उन्हें स्वर्ण मंदिर में होने वाले नरसंहार का बदला इंदिरा से लेना था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के ठीक 5 महीने बाद यानी 31 अक्टूबर, 1984 को मौका मिलते ही इंदिरा गांधी के बॉडीगार्ड्स सतवंत सिंह और बिंत सिंह ने इंदिरा गांधी को 31 बुलेट मारकर हत्या कर दी। ये घटना दिल्ली के सफदरगंज रोड पर हुई थी और इस हमले ने गांधी परिवार को तोड़ दिया। उस दौरान आपातकालीन स्थिति में इंदिरा के बड़े बेटे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया था।
इंदिरा गांधी की उपलब्धियां (Achievements of Indira Gandhi)
इंदिरा गांधी अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा और अन्य अधिकारी
नई दिल्ली में उनके घर को म्यूजियम बनाया या और इसे इंदिरा गांधी मेमोरियल म्यूजियम के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा दिल्ली में स्थित इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, मशहूर समुद्री ब्रिज पंबन ब्रिज भी इंदिरा रोड के नम पर ही है। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (IGNOU), इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी (अमरकंटक), इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इंदिरा गांधी ट्रेनिंग कॉलेज, इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस जैसी कई संस्थाएं हैं।
साल 1971 में इंदिरा गांधी को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था और साल 1972 में बांग्लादेश को आजाद करवाने के लिए इन्हें मेक्सिकन अवॉर्ड दिया गया था। साल 1953 में यूएसए में मदर्स अवॉर्डज दिया गया। साल 1967 और 1968 में फ्रेंच इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन पोल के अनुसार वे फ्रेंच लोगों की पसंदीदा नेता थीं।
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